श्री कृष्ण के जीवन से क्या-क्या शिक्षा और अनमोल बातें ग्रहण कर सकते है छात्र..? कृष्ण का कामयाबी पथ। जन्माष्टमी पर विशेष लेख।
प्रेरणा डायरी (ब्लॉग )

4. सुख और दुख में संतुलन -
टुड़ावली, राजस्थान -321610
श्री कृष्ण के जीवन से क्या-क्या शिक्षा और अनमोल बातें ग्रहण कर सकते हैं छात्र..? जाने श्री कृष्ण का कामयाबी पथ । जन्माष्टमी पर विशेष लेख।
कृष्ण ने गीता के रूप में अपने जीवन के संपूर्ण स्वरूप का बड़े ही विस्तार से और रोचक तरीके से वर्णन किया है। श्री कृष्ण ने अपने जीवन के माध्यम से हमें अनेक संदेश दिए हैं। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से लोगों को सिखाया कि किस तरह कर्म योग पर चला जाता है..? कैसे रिश्तो को निभाया जाता है .? जीवन की चुनौतियों का सामना कैसे किया जाता है...? कैसे जीवन में कामयाबी और उन्नति प्राप्त की जाती है ? श्री कृष्ण की जीवन से अनेक अनमोल बातों को ग्रहण करके छात्र अपने संपूर्ण जीवन को सफल और सुखदाई बना सकते हैं। प्रेरणा डायरी ( www.prernadayari.com ) के आज के लेख में हम इन्हीं बातों को जानेंगे और इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने का प्रयास करेंगे, तो आइये आगे बढ़ते हैं आज के लेख मे--
टेबल ऑफ़ कंटेंट -
1. कर्म योग की साधना।
2. कर्तव्य निभाने की प्रेरणा।
3. सहयोग और समर्पण की भावना।
4. सुख दुख में संतुलन बनाना।
5. आत्मा की पहचान करना।
6. सत्य की खोज।
7. भौतिकता से मुक्ति।
8 . भावनाओं पर नियंत्रण।
9. नम्रता और सम्मान की प्रेरणा।
10 . क्षणिकता का ज्ञान।
1. कर्म योग की साधना --
" कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचानन"
अर्थात तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, परिणाम में नहीं।
गीता में श्री कृष्ण ने कर्म योग की बात की है जिसका अर्थ है अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करना और फल की चिंता छोड़ देना। " निष्काम कर्म " सिद्धांत का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह सिद्धांत परमेश्वर श्री कृष्ण की देन है। यह सिद्धांत हमें यह सिखाता है कि बिना फल की इच्छा किए हुए हमें ईमानदारी से अपना कर्म करना चाहिए। गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को कम का उपदेश दिया था। हर परिस्थिति में हमें हमारे कम पर डटे रहना चाहिए, बिना इसकी लालसा पहले के इसका परिणाम क्या होगा।
निष्काम कर्म का सिद्धांत छात्रों के लिए तो एक वरदान की भांति है। एक अच्छे छात्र को अपना पूरा ध्यान अपने अध्ययन पर केंद्रित करना चाहिए, पूरे मां और लगन के साथ अपने कर्म को करना चाहिए। उसके परिणाम क्या होंगे इस बात पर चिंतन करके अपना समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए। निष्काम कर्म के सिद्धांत को छात्र अगर अपने जीवन में उतारें , तो उनका भविष्य सुनहरा हो सकता है।
2. कर्तव्य निभाने की प्रेरणा -
श्री कृष्ण ने अपने धर्म और कर्तव्य को निभाने का महत्व बताया है। सही समय पर और जिम्मेदारी के साथ अपने कर्तव्यों को निभाने वाला इंसान एक महान आत्मा में तब्दील हो जाता है. श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही संदेश दिया है और यही प्रेरणा भी दी है, "कि तुम परिणाम की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहो, फिर तुम्हारे साथ सब अच्छा होगा ।" विषम परिस्थितियों में भी हमें अपने कर्तव्य मार्ग से पीछे नहीं हटना चाहिए। स्वीट धर्म और अपने कर्तव्यों का पालन जब हम ईमानदारी के साथ करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां को निभाते हैं तो हमें आत्म संतोष और आंतरिक शांति भी प्राप्त होती है। श्री कृष्ण का जीवन हमें अपनी कर्तव्यों को पूरा करने का संदेश देता है। श्री कृष्ण के जीवन से छात्र अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करने के गुण को ग्रहण कर सकते हैं। अपने कर्तव्यों को समय पर निभाने वाले लोग महान स्थान को प्राप्त कर सके है। श्री कृष्ण का जीवन हमें अपने कर्तव्यों को निभाने की प्रेरणा देता है।
3. सहयोग और समर्पण की भावना -
श्री कृष्ण ने सहयोग और समर्पण की महत्व को बताते हुए कहा कि हमें अपनी ऊर्जा और प्रयासों को बड़े लक्षणों की ओर अर्पित करना चाहिए और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां को समझना चाहिए। सहयोग और समर्पण के भाव से हम एक मजबूत और एकजुट तथा उन्नत सील समाज का निर्माण कर सकते हैं। भ्रातत्व, सहयोग और समर्पण के भाव ही एक महान समाज का निर्माण करते हैं। यही भावना हमें व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ सामूहिक भलाई के लिए भी प्रेरित करती है।
4. सुख और दुख में संतुलन -
श्री कृष्ण ने संतुलन और मध्य मार्ग पर चलने की बात की है। उन्होंने कहा कि हमें जीवन में अत्यधिक खुशी या दुख दोनों में संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमें किसी भी स्थिति में समर्पण और संतुलन बनाए रखना चाहिए। संतुलन से हम जीवन की परेशानियों की सहजता से स्वीकार कर एक स्थिर और सुखी जीवन जी सकते हैं। मानव स्वभाव होता है कि वे दुख के दिनों में व्यथित होते हैं और निराशा से घिर जाते हैं। श्री कृष्ण का जीवन हमें सुख के साथ-साथ दुख में भी सुखी रहने का संदेश देता है।
" सुख -दुख जीवन का हिस्सा है। "
आज के प्रतियोगिता के दौर में छात्रों का जीवन भी चुनौतियों से सामना करता है। ऐसे में छात्रों को भी श्री कृष्ण के जीवन से यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि उनके जीवन में आने वाले उतार- चढ़ाव, सफलता -असफलता, और सुख -दुख का सामना वह समदर्शी भाव से करें। "सफलता के दिनों का अहंकार नहीं..तो असफलता के दिनों का दुख नहीं। श्री कृष्ण के जीवन से ग्रहण करने योग्य, छात्रों के लिए यह एक अनमोल बात है।
5. आत्मा कि पहचान करना -
श्री कृष्ण ने आत्मा की अमरता को माना। उन्होंने आत्मा की पहचान करने का उपदेश दिया। आत्मा की पहचान करके व्यक्ति अपने स्वरूप से परिचित होता है। उसे यह समझ में आने लगता है कि वह कौन है..? और इस जगत में क्यों आया है..? आत्मा की पहचान ही हमें यह बताती है कि हमारा शरीर केवल भौतिक सुखों को भोगने के लिए नहीं बना। बल्कि इसका परम उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है। भौतिक सुख केवल क्षणिक है और मनुष्य को विनाशो की ओर अग्रसर करते हैं। आत्मा का ज्ञान हमें आत्म साक्षात्कार की दिशा में प्रेषित करता है। आत्म साक्षात्कार के बाद ही हमें आंतरिक शक्ति और शांति का एहसास होता है. इन परम उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही मनुष्य का जन्म हुआ है. महान विद्वान स्वयं स्वामी विवेकानंद ने इन शिक्षाओं को ग्रहण किया। उन्होंने अपनी आत्मा की पहचान और आत्म साक्षात्कार करके ईश्वर क्या है.? आत्मा क्या है..? जैसे परम उद्देश्यों की प्राप्ति की। आज के दबाव और तनाव भरे शैक्षिक माहौल में, श्री कृष्ण के जीवन ये अनमोल बाद छात्र अपने जीवन में उतार सकते हैं। छात्रों को भी अपने जीवन में भौतिक सुखों से दूरी बनाकर अपने परम उद्देश्यों की प्राप्ति में जुटे रहना चाहिए।
6. सत्य की खोज -
सत्य और ईमानदारी का अनुसरण करने की प्रेरणा भी श्री कृष्ण ने दी है। उन्होंने अपने जीवन से हमें यह संदेश दिया कि हमें हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए भले ही परिस्थितियों कितनी भी कठिन हो। यह सब श्री परमेश्वर श्री कृष्ण की जीवन की वह बातें हैं जिनको छात्रों को अपने जीवन में उतरने की माहिती आवश्यकता है। सत्य के मार्ग पर चलने से हमारे नैतिक मूल्य मजबूत होते हैं। सत्य के मार्ग पर चलने से हम समझ में विश्वास और सम्मान प्राप्त करते हैं। यह सीख हमें जीवन में ईमानदारी और सत्यता की दिशा में मार्गदर्शन देती है।
7. भौतिकता से मुक्ति -
श्री कृष्ण ने भौतिक सुखों के प्रति आसक्ति से दूर रहने का उपदेश दिया है। उन्होंने कहा कि जीवन की ए स्थिरता को स्वीकार करके आंतरिक संतोष को प्राथमिकता देनी चाहिए. भौतिक सुख हमें हमारे मार्ग से विचलित करते हैं। भौतिक सुखों को परम लक्ष्ओं की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करने वाले तत्वों के रूप में चिन्हित किया गया है। यदि हम भौतिक सुखों की क्षणिकता को समझते हैं तो हमारा मन स्थिर और स्थाई शांति की ओर अग्रसर होने लगेगा। श्री कृष्ण के अनुसार भौतिक सुख क्षणिक है। अपने जीवन में महान उद्देश्यों की प्राप्ति ही वास्तविक खुशी है। भौतिकता की मुक्ति से हमें संतोष प्राप्त होता है। संतोष व्यक्ति को सुख प्रदान करता है।
8. भावनाओं पर नियंत्रण-
श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना चाहिए और आंतरिक शांति बनाए रखनी चाहिए। जब हम क्रोध, चिंता और अन्य नकारात्मक भावनाओं से दूर रहते हैं तो हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं। जीवन की समस्याओं का सामना कर सकते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण अपना सकते हैं। आत्म नियंत्रण और मानसिक शांति भावनात्मक स्थिरता प्रदान करती है। भावनात्मक स्थिरता हमें बौद्धिक रूप से मजबूत बनाती है। श्री कृष्णा हमें भावनाओं पर नियंत्रण रखने की प्रेरणा देते हैं।
9. नम्रता और सम्मान की प्रेरणा -
श्री कृष्ण का जीवन नम्रता और सम्मान का आदर्श उदाहरण है उन्होंने हमें यह सिखाया कि दूसरों के प्रति सम्मान और नम्रता रखना हमारे सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है। विनम्रता से हम दूसरों की भावनाओं की कद्र कर सकते हैं। और सामूहिक सौहार्द को बढ़ावा दे सकते हैं। यह गुण हमें अहंकार से दूर रखता है। विनम्रता अहंकार नाशक है। यह गुण हमें एक सहयोगी और समर्पित समाज की ओर ले जाता है।
10. क्षणिकता का ज्ञान --
श्री कृष्ण ने अपने जीवन के माध्यम से हमें यह संदेश दिया है की परिस्थितियों क्षणिक हैं। हर व्यक्ति के जीवन में अच्छा-बुरा समय आता है।
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