श्री कृष्ण के जीवन से क्या-क्या शिक्षा और अनमोल बातें ग्रहण कर सकते है विधार्थी..? कृष्ण का कामयाबी पथ। जन्माष्टमी पर विशेष लेख।

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श्री कृष्ण के जीवन से क्या-क्या अनमोल बातें और शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं छात्र.?




श्री कृष्ण केवल एक देवता नहीं हैं, वह एक विचार हैं। श्री कृष्ण चरित्र की एक श्रेणी है जिसमें प्रेम, बुद्धि, करुणा, युद्ध नीति, त्याग और सामाजिक नेतृत्व शामिल है। जन्माष्टमी केवल कृष्ण के जन्म की याद नहीं है, बल्कि उनके भाव को अपने अंदर पुर्नजागृत करने का अवसर है। आज जब समाज ए संतुलन द्वंद सत्य से खींचा गया है तब हमें खुद से इस पौंड की आवश्यकता है कि क्या हमारे अंदर कृष्ण जीवित हैं..?

 योग, नीति और प्रेम के अवतार भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं जहां जीवन को प्रेम बनाना सिखाती हैं, वहीं गीता का उपदेश जीवन को कर्म, धर्म और आध्यात्मिक निर्माण की प्रेरणा देता है। कृष्ण का जीवन ऐसा दिव्य पाठ है, जिसे आध्यात्मिक शांति भी प्राप्त कर सकती है। विद्यार्थियों के लिए कृष्ण का प्रगति पथ सदैव से ही अनुकरणीय है। श्री कृष्ण केवल एक चरित्र का नहीं बल्कि जीवन का दर्शन है। वे रस में रस है, रण में नीति है, और धर्म में आस्था है, तो प्रेम में परमानंद है। जन्माष्टमी केवल उत्सव नहीं है। यह एक दस्तावेज है - उनके जीवन से सीख कर अपने जीवन को दिव्यता की ओर ले जाएं का कृष्ण का उपदेश शांति और सफलता की ओर ले जाते हैं। 

 कृष्ण ने गीता के रूप में अपने जीवन के संपूर्ण स्वरूप का विस्तृत विवरण और रोचक विवरण का वर्णन किया है। श्री कृष्ण ने अपने जीवन के माध्यम से हमें कई संदेश दिये हैं। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से लोगों को सिखाया कि किस प्रकार के कर्म योग का उपयोग किया जाता है..? रिश्ते को कैसे बचाया जा सकता है.? जीवन की झलक का सामना कैसे होता है...? जीवन में कार्यकर्ता और सात्विक साधक कैसे बन सकते हैं.? श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी कई अनमोल बातें जिन्हें छोड़कर व्यक्ति अपना पूरा जीवन सफल और सुखद बना सकता है। प्रेरणा डायरी (www.prranadayari.com)  के आज के लेख में हम श्री कृष्ण के जीवन से जुड़ी सकारात्मक बातों को जानेंगे और समस्याओं के उत्तर जानने का प्रयास करेंगे, तो आइए आज के लेख में आगे बढ़ें--



 आज की पोस्ट में / टेबल ऑफ़ कंटेंट

1. कर्म योग की साधना।
2. कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा।
3. सहयोग और समर्पण की भावना।
4. सुख दुख में संतुलन बनाना।
5. आत्मा की पहचान करना। 
6. सत्य की खोज।
7. भौतिकता से मुक्ति।
8 . भावनाओं पर नियंत्रण।
9. नम्रता और सम्मान की प्रेरणा।
10. क्षणिकता का ज्ञान।
11. रिश्तों में प्रेम, मर्यादा और संतुलन बनाए रखें।
12. भक्ति का सार है- समर्पण।
13. कृष्ण सिर्फ पेंटिंग में नहीं हमारे अंदर भी है।
14. ' मोह'  और ' अहम्' के अपोजिट का नाम कृष्ण-मार्ग है।
15. स्वयं का विवेक ही सबसे बड़ा चमत्कार है।   
16. जन्माष्टमी अपने भीतर झांकने का अवसर है।
17. प्रेम और रणनीति।
18. अपने अंदर के कृष्ण को खोने न दें।
19. निष्कर्ष/ सारांश।
20. संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर।


1. कर्म योग की साधना --

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचानन"
 अर्थात् आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, परिणाम में नहीं। 

 गीता में श्री कृष्ण ने कर्म योग का अर्थ बताया है अपने कर्मों पर ध्यान केन्द्रित करना और फल की चिंता छोड़ना। यह उपदेश केवल युद्ध भूमि के लिए नहीं बल्कि जीवन की हर परिस्थिति के लिए है यह भगवान श्री कृष्ण की मांद है। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि बिना फल की इच्छा के हमें ईमानदारी से अपना कर्म करना चाहिए। गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया था। हर परिस्थिति में हमें हमारे कर्म पथ पर रुकना चाहिए, बिना इसके लालसा के पहले परिणाम क्या होंगे।   
 निष्काम कर्म का सिद्धांत विद्यार्थियों के लिए एक गौरव का प्रतीक है। एक अच्छे छात्र को अपना पूरा ध्यान अपने अध्ययन पर केंद्रित करना चाहिए, पूरे मन और लगन के साथ अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए। उसके परिणाम क्या होंगे इस बात पर ध्यान देने के लिए अपना समय चयन नहीं करना चाहिए। निष्काम कर्म का सिद्धांत यदि विद्यार्थी अपने जीवन में उतरें, तो उनका भविष्य सुनहरा हो सकता है।

2. कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा -

 भगवान श्री कृष्ण संपूर्ण जीवन धर्म की रक्षा और धर्म के विनाश का प्रतीक हैं। उन्होंने गीता में स्पष्ट कहा--
 
  यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
 अभिगृहानं अधर्मेश तदात्मनं सृजमहम्।।

 कंस का वध जरासंध से युद्ध शिशुपाल का वध और कुरुक्षेत्र में पांडवों के साथ हर स्थिति में कृष्ण ने धर्म की प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखा।

 श्री कृष्ण ने अपने धर्म और कर्तव्य का महत्व बताया है। सही समय और जिम्मेदारी के साथ, निष्ठा के साथ, अपना किरदार अदा करने वाला इंसान एक महान आत्मा में डूब जाता है। श्री कृष्ण ने अर्जुन को यही संदेश दिया है और यही प्रेरणा भी दी है, "क्या तुम अपनी चिंता के बिना अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहो, फिर तुम्हारे साथ सब अच्छा होगा।" कठिन परिस्थिति में भी हमें अपना उपयुक्त मार्ग से पीछे नहीं हटना चाहिए। धर्म और अहिंसा का पालन जब हम ईमानदारी के साथ करते हैं, और अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखते हैं तो हमें आत्म संतोष और आंतरिक शांति भी प्राप्त होती है। श्री कृष्ण का जीवन हमें अपनी अखंडता को पूरा करने का संदेश देता है। श्री कृष्ण के जीवन से विद्यार्थी अपनी निष्ठा का निर्वाह करने के गुण ग्रहण कर सकते हैं। आप समय पर पूर्णता देकर वाले लोग महानता को प्राप्त कर सकते हैं। श्री कृष्ण का जीवन हमें अपनी निष्ठा को अभिनय की प्रेरणा देता है।

3. सहयोग एवं वंदन की भावना -

 श्री कृष्ण ने सहयोग और योगदान के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हमें ऊर्जा और प्रयास को बड़े लक्ष्य की ओर बढ़ाना चाहिए और समाज के प्रति अपनी-अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए। सहयोग और समर्पण के भाव से हम एक मजबूत और एकजुट और उन्नत सील समाज का निर्माण कर सकते हैं। भाईचारा, सहयोग और दान के भाव ही एक महान समाज का निर्माण करते हैं। यही भावना हमें व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ सामूहिक लाभ के लिए भी प्रेरित करती है 


4. सुख और दुख में संतुलन -

श्री कृष्ण ने संतुलन और मध्य मार्ग पर बेहतर बात की है। उन्होंने कहा कि हमें जीवन में अत्यधिक खुशी या दुख दोनों में संतुलन बनाए रखना चाहिए। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमें किसी भी स्थिति में संतुलन बनाए रखना चाहिए। संतुलन से हम जीवन की सहजता से एक स्थिर और सुखी जीवन जी सकते हैं। मानव स्वभाव ऐसा होता है कि वे दुःख के दिनों में व्यथित हो जाते हैं और पतन से घिर जाते हैं। श्री कृष्ण जीवन हमें सुख के साथ-साथ दुख में भी सुखी रहने का संदेश देते हैं।

5. "सुख-दुःख जीवन का भाग है।"

 आज के प्रतियोगिता के दौर में छात्रों के जीवन में भी अनेक कष्ट और परेशानियां आ जाती हैं। ऐसे में विद्यार्थियों को भी श्री कृष्ण के जीवन से यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि उनके जीवन में आने वाले प्रभाव- पतन, सफलता-असफलता और सुख-दुख का सामना वह समकारी भाव से करें। "सफलता के दिनों की अत्यंत खुशी नहीं..तो असफलता के दिनों का दुख नहीं। श्री कृष्ण के जीवन से ग्रहण करने योग्य, छात्रों के लिए यह एक अनमोल बात है।" 

5. आत्मा को पहचानना -

 श्री कृष्ण ने आत्मा की अमृतता को माना। उन्होंने आत्मा की पहचान करने का उपदेश दिया। आत्मा की पहचान करके व्यक्ति अपने स्वरूप से परिचित होता है। उसे यह समझ में आता है कि वह कौन है..? और इस जगत में क्यों आया है..? आत्मा की पहचान ही हमें बताती है कि हमारे शरीर के लिए केवल भौतिक सुखों का भोग नहीं लगाया जा सकता। बल्कि इसका परम उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति है। भौतिक सुख केवल क्षणिक है और मनुष्य को विनाश की ओर ले जाता है। आत्मा का ज्ञान हमें आत्म साक्षात्कार की दिशा बताता है। साक्षात्कार के बाद ही हमें आंतरिक शक्ति और शांति का एहसास होता है। इन परमानंद की संपत्ति के लिए ही इंसान का जन्म होता है। महान विद्वान स्वामी विवेकानंद ने इन शिक्षाओं को ग्रहण किया। उन्होंने अपनी आत्मा की पहचान और ईश्वर से साक्षात्कार करके इस बात को क्या जाना है?
 आत्मा क्या है..? जैसे परमपिता परमेश्वर की मूर्ति की। आज के दबाव और तनाव से सबसे पहले शुरुआत समुद्र में, श्री कृष्ण के जीवन की ये अनमोल बात छात्र अपने जीवन में उतार सकते हैं। छात्रों को भी अपने जीवन में भौतिक सुखों से दूरी बनाकर अपने अंतिम संस्कारों में शामिल होना चाहिए।

6. सत्य की खोज -

 सत्य और सत्य का प्रमाण करने की प्रेरणा  भी श्री कृष्ण ने दी है। उन्होंने अपने जीवन से हमें यह संदेश दिया कि हमें हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए, भले ही यह परिदृश्य कितना भी कठिन क्यों न हो। यह सभी श्री भगवान श्री कृष्ण के जीवन की बातें हैं जो विद्यार्थियों को अपने जीवन में उतरने की महत्ता की आवश्यकता है। सत्य के मार्ग पर चलने से हमारे नैतिक मूल्य मजबूत होते हैं। सत्य के मार्ग पर चलने से हम समझते हैं कि विश्वास और सम्मान प्राप्त होता है। यह हमें जीवन में ईमानदारी और सत्यता की दिशा में निर्देशित करता है।

7. भौतिकता से मुक्ति -

 श्री कृष्ण ने भौतिक सुखों की प्रति आशक्ति से दूर रहने का उपदेश दिया है। उन्होंने कहा कि जीवन की स्थिरता को स्वीकार करते हुए संतोष को आंतरिक कार्य करना चाहिए। भौतिक सुख हमें हमारे मार्ग से अलग करते हैं। भौतिक सुखों को परम लक्ष्ण की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करने वाले उत्पाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यदि हम भौतिक सुखों की क्षणिकता को नष्ट कर देते हैं तो हमारा मन स्थिर और स्थिर शांति की ओर होता है। श्री कृष्ण के अनुसार भौतिक सुख क्षणिक है। आपके जीवन में महान मूर्ति की प्राप्ति ही वास्तविक खुशी है। भौतिकता की मुक्ति से हमें संतोष प्राप्त होता है। संतोष व्यक्ति को सुख प्रदान करता है।


8. भावनाओं पर नियंत्रण-

 श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि हमें अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए और आंतरिक शांति बनाए रखनी चाहिए। जब हम क्रोध, चिंता और अन्य नकारात्मक भावनाओं से दूर रहते हैं तो हम बेहतर निर्णय ले सकते हैं। जीवन की समस्याओं का सामना कर सकते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण अपना सकते हैं। आत्म नियंत्रण और मानसिक शांति स्टेबलाइजर प्रदान करता है। स्थिर स्थिरता हमें स्थिरता के रूप से मजबूत स्थापना है। श्री कृष्ण हमें भावनाओं पर नियंत्रण रखने की प्रेरणा  देते हैं।

9. नम्रता और सम्मान की प्रेरणा -

 श्री कृष्ण के जीवन नम्रता और सम्मान के आदर्श उदाहरण हैं उन्होंने हमें यह सिखाया है कि स्कूलों के प्रति सम्मान और नम्रता हमारे सामाजिक जुड़ाव को मजबूत बनाते हैं। क्लास से हम लेखकों की भावनाओं का कद्र कर सकते हैं। और सामूहिक प्रतिभागियों को बढ़ावा दे सकते हैं। यह गुण हमें व्यवहार से दूर रखना है। फ़ेस्टिवल नैक है। यह गुण हमें एक सहयोगी और समर्पित समाज की ओर से ले जाता है।

10. क्षणिकता का ज्ञान --

 श्री कृष्ण ने अपने जीवन के माध्यम से हमें यह संदेश दिया है कि हम आपके जीवन के बारे में क्या सोचते हैं। हर व्यक्ति के जीवन में अच्छा-बुरा समय आता है।

11. रिश्ते में प्रीमियम प्रतिबंध और संतुलन बनाए रखें -

 कृष्ण का मानव जीवन सारांश की गहराई और प्राकृतिक का जीवन तो उदाहरण है। बाल अवस्था में यशोदा मैया के प्रति वात्सल्य, बलराम के प्रति अटल बंधन सुदामा से मित्रता रुक्मिणी सत्यभामा के संग जीवन में संतुलन हर संबंध में स्नेह और मर्यादा का आदर्श आदर्श प्रस्तुत करता है। विशेष रूप से राधा और श्री कृष्ण के प्रेम का प्रतीक नहीं बल्कि आध्यात्मिक प्रेम का प्रतीक है। जहाँ न अधिकार है, न विशिष्टता है, यदि है तो केवल कर्तव्य है। यह बात हमें सिखाती है कि प्रेम में आत्मा का मिलन ही श्रेष्ठतम है। इबादत, श्रद्धा, और स्नेह में ही सबसे बड़ा बल होता है। 

12. भक्ति का सार है -

 कृष्ण ने गीता में कहा है कि यदि मनुष्य विश्वास के साथ शरणागत हो जाए, तो वह उसे पापों से मुक्त कर देता है। उनके अनुसार भक्ति केवल पूजन वीडियो तक सीमित नहीं है बल्कि मन वचन और कम से कम से कम से कम एक ही दूरी तक सच्ची भक्ति है।

13. कृष्णा सिर्फ पेंटिंग में ही नहीं हमारे अंदर भी हैं -

 भगवान श्री कृष्ण को हम मथुरा-वृंदावन द्वारका या किसी मंदिर में स्थापित मूर्ति के रूप में देखते हैं। गीता में वे स्वंय कहते हैं - "ईश्वर सर्व भूताना" अर्थात ईश्वर सभी जगह है, प्रत्येक जीव के हृदय में है। यह श्लोक स्पष्ट करता है कि कृष्ण केवल बाहर की भावना रखते हैं, भीतर की भावना नहीं। कृष्ण को इंगित करने के लिए व्रत उपवास या भजन काफी नहीं हमें उनके अंदर हुंकार करके देखना होगा कि क्या हमने सत्य, धर्म, प्रेम और करुणा जैसे गुणों को स्वीकार किया है या नहीं..? इसमें कृष्ण को जीवित रखने का अर्थ है हमारे आचरण सोच और जीवन शैली में कृष्ण के गुणों को शामिल करना। 



14. 'मोह' और 'अहम्' से मुक्ति का नाम है कृष्ण मार्ग -

 मोह और अहम् ये दो ऐसे तत्व हैं जो हमें प्रभु से दूर कर देते हैं। अहम् अल्लाह का प्रतीक है. श्री कृष्ण ने कभी अर्जुन को युद्ध का वादा नहीं किया, बल्कि उन्होंने उन्हें सही दृष्टिकोण दिया। उन्होंने कहा - "मा फलेषु कदाचानन" - अर्थात फल की चिंता मत करो। अगर विद्यार्थी सीखना चाहते हैं तो कृष्ण मार्ग का यह उनके लिए एक मूल मंत्र है। उनका यह दर्शन आज की दुनिया में है, जहां हर कोई अप्रत्याशित सफलता और स्वास्थ्य की आवश्यकता चाहता है, वहां आत्म निरीक्षण के लिए प्रेरणा मिलती है। जब हम अपने अंदर के मुंह में क्रोधी व्यक्ति और अपमान को त्यागते हैं तब कृष्णा हमारे अंदर जीवतं तो हो सकते हैं। आज विद्यार्थियों को इस बात की आवश्यकता है कि वह अपनी असुरक्षा और इच्छाओं को कृष्ण के गीता ज्ञान से नियंत्रित करना सीखें।

15. 'विवेक' ही सबसे बड़ा चमत्कार -

 श्री कृष्ण जीवन भर संघर्षों से अलग हो रहे हैं। जन्म से कुरूक्षेत्र तक। उन्होंने कभी विवेक और संतुलन नहीं खोया। पूतना का वध हो या अर्जुन को धर्म का बोध कराना, हर मोड़ पर उन्होंने अपने विवेक का परिचय दिया। गीता में भी उन्होंने कहा है कि - "योगस्थ: गुरु कर्माणी" अर्थात योग युक्त होकर कम करो। इसका अर्थ है कि जीवन के हर कार्य में संयम और विवेक का उपयोग होना चाहिए आज तेजी से बदलते दौर में जब हम भावनाओं में बहकर निर्णय लेते हैं, और मात खा जाते हैं, कृष्ण का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है।

16. जन्माष्टमी अपने भीतर झांकने का अवसर है -

 श्री कृष्ण जन्माष्टमी महेश एक उत्सव यह त्योहार नहीं है बल्कि यह एक साधना है। यह आपके लिए सुविधाओं का एक अवसर है। वह दिन है जब हम अपने अंदर यह प्रश्न चिह्न रखते हैं कि हमारे विचार, कर्म और व्यवहार में आज भी कृष्ण मौजूद हैं..?
क्या हम संकट में गीता की शरण में लेते हैं..? 
क्या हम अपने जीवन में नीति और सिद्धांतों को अपना पाए हैं..?
 इस जन्माष्टमी पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि कृष्णा ने शिशुपाल को 100 अपराध तक माफ कर दिया था। हम सत्य के विरुद्ध खड़े हो जैसे कृष्णा ने दुर्योधन की सत्ता को चुनौती दी। और हम सब लोगों से हर प्राणी मात्र से प्रेम करें जैसे कृष्णा ने राधा से किया था।

17. प्रेम और रणनीति -

 श्री कृष्ण के जीवन धार्मिक उपदेश तक सीमित नहीं थे श्री कृष्ण का जीवन धार्मिक उपदेशों तक सीमित नहीं था। वीर रस रसिया भी थे और रणभूमि में महान रणनीतिकार भी थे। वे संगीतग्य भी थे और कूटनीतिज्ञ भी थे। श्री कृष्ण के भीतर प्रेम की गहराई थी जहां उन्होंने राधा से आत्मिक प्रेम किया तो वही वह राजधर्म निभाने हुए शिशुपाल जैसे शत्रु को भी बर्दाश्त करते रहे। आज की पीढ़ी के लिए यह सीख अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जीवन केवल भावनाओं से नहीं बुद्धिमत्ता प्रेम और संतुलन से चलता है जब हम भावनाओं और विवेक में संतुलन बनाते हैं तब भी अपने भीतर के कृष्ण को जीवित रख पाते हैं।


18. अपने अंदर के कृष्ण को खोने न दें 

आज जब दुनिया बाहरी चक्र, बाजारवाद, भौतिकतावाद, भेदभाव द्वेष और घृणा, युद्ध और संघर्षों से भरी हुई है तब श्री कृष्ण के अंदरूनी दर्शन को अपनाना अनिवार्य हो जाता है। यही दर्शन दुनिया को बचाए रखने और उसे सुंदर बनाए रखने में मदद करता है। आप भी श्री कृष्ण भक्त हैं तो उनको केवल मथुरा-वृंदावन या अन्य मंदिरों में न खोजें, बल्कि उन्हें अपने विचारों, आचरण और कर्मों में उतारे। हर साल जन्माष्टमी हमें यह अवसर देती है कि हम अपने भीतर के कृष्ण को पहचाने उन्हें जगाएं और संजोकर रखें। यही वास्तविक भक्ति है और यही जीवन की सबसे गहरी साधना है। ईश्वर के प्रति भी और खुद के प्रति भी। यही प्रेम इस जीवन के लिए सबसे जरूरी तत्व है। 

19 निष्कर्ष सारांश 

कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह त्योहार श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। उनके जीवन और शिक्षाओं ने हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है। इस त्योहार के अवसर पर, लोग विभिन्न तरीकों से जश्न मनाते हैं। भगवान श्री कृष्ण की पूजा-अर्चना करने के लिए मंदिरों में जाते हैं। कई लोग इस दिन उपवास रखते हैं और भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहते है कृष्ण की भक्ति में भजन गाते हैं और उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व भी रखता है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाने और प्रेम, भक्ति और एकता की भावना को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है। इस त्योहार के माध्यम से, लोग भगवान श्री कृष्ण की शिक्षाओं और उनके जीवन के आदर्शों को याद करते हैं और अपने जीवन में उनका अनुसरण करने का प्रयास करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हमें प्रेम, करुणा और आत्म-ज्ञान के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है।

अंत में, कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हमें भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और उनके आदर्शों को अपनाने का अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार हमें प्रेम, एकता और आत्म-ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।


20 संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 

क्वेश्चन 1. जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है..?
उत्तर - जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ था, जहां उनके मामा कंस के अत्याचार से उन्हें बचाने के लिए उनके पिता वासुदेव ने उन्हें गोकुल में नंद बाबा के घर पहुंचाया था।
जन्माष्टमी मनाने के कुछ प्रमुख कारण हैं:

1. भगवान श्री कृष्ण की भक्ति : जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और उनके जीवन के आदर्शों को याद करने का अवसर प्रदान करती है।
2. धर्म की जीत : भगवान श्री कृष्ण का जन्म धर्म की जीत और अधर्म के नाश के लिए हुआ था, इसलिए यह त्योहार धर्म की जीत का प्रतीक है।
3. सांस्कृतिक महत्व : जन्माष्टमी का त्योहार सांस्कृतिक महत्व रखता है और लोगों को एक साथ लाने का अवसर प्रदान करता है।

इस त्योहार के अवसर पर, लोग विभिन्न तरीकों से जश्न मनाते हैं, जैसे कि मंदिरों में पूजा-अर्चना, उपवास, कृष्ण भजन और कृष्ण लीला का आयोजन।

Question 2. जन्माष्टमी का क्या महत्व है..?
उत्तर - जन्माष्टमी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है, क्योंकि यह भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार के कुछ प्रमुख महत्व हैं:

1. भगवान श्री कृष्ण की भक्ति : जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और उनके जीवन के आदर्शों को याद करने का अवसर प्रदान करती है।
2. धर्म की जीत : भगवान श्री कृष्ण का जन्म धर्म की जीत और अधर्म के नाश के लिए हुआ था, इसलिए यह त्योहार धर्म की जीत का प्रतीक है।
3. सांस्कृतिक महत्व : जन्माष्टमी का त्योहार सांस्कृतिक महत्व रखता है और लोगों को एक साथ लाने का अवसर प्रदान करता है।
4. आध्यात्मिक महत्व : जन्माष्टमी का त्योहार आध्यात्मिक महत्व रखता है और लोगों को आत्म-ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में प्रेरित करता है।
5. प्रेम और करुणा का संदेश : भगवान श्री कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं में प्रेम और करुणा का संदेश है, जो लोगों को एक दूसरे के प्रति प्रेम और करुणा की भावना को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है।

इस त्योहार के माध्यम से, लोग भगवान श्री कृष्ण की शिक्षाओं और उनके जीवन के आदर्शों को याद करते हैं और अपने जीवन में उनका अनुसरण करने का प्रयास करते हैं।



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राइटर - के. एल. लिग्री/सिंह साब


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