क्या होता हैं बाल अपराध....? बाल अपराध के क्या कारण है...? और बाल अपराधों को कैसे रोका जा सकता है..?

प्रेरणा डायरी.
तुड़ावाली, करौली, राजस्थान - 321610

 सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कुछ कानून होते हैं इन कानून का पालन करना सबके लिए अनिवार्य होता है चाहे वह वयस्क हो या बालक। यदि वयस्क उन कानून की अवहेलना करके समाज विरोधी कार्य करता है तो उसका कार्य अपराध कहा जाता है और यदि बालक या किशोर इस प्रकार का कार्य करता है तो उसका कार्य बाल अपराध या किशोर अपराध कहा जाता है।
 विभिन्न देशों में बाल अपराधियों की निम्नतम और उच्चतम आयु अलग-अलग है। भारत में इस बालक या किशोर का समाज विरोधी कार्य अपराध माना जाता है जिसकी न्यूनतम आयु 7 वर्ष और अधिकतम आयु 16 वर्ष होती है।
 हम बाल अपराध और बाल अपराधियों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करेंगे लेकिन लिए उससे पहले एक बार यह समझते हैं कि बाल अपराध को किस तरह परिभाषित किया गया है..?



1. बाल अपराध की परिभाषाएं --
( definition of delinquency )


 1. वेलेंटाइन -

" मोटे तौर पर बाल अपराध शब्द किसी कानून के भंग किए जाने का उल्लेख करता है"

2. क्लासमियर व गुडविल -

"बाल अपराधी वह बालक या युवक होता है जो बार-बार उन कार्यों को करता है जो अपराधों के रूप में दंडनीय हैं।"

3. गुड -

" कोई भी बालक जिसका व्यवहार सामान्य सामाजिक व्यवहार से इतना भिन्न हो जाए कि उसे समाज विरोधी कहा जा सके,  बाल अपराधी कहलाता है।

4. स्किनर -

 बाल अपराध की परिभाषा किसी कानून के उसे उलझन के रूप में की जाती है जो किसी वयस्क द्वारा किए जाने पर अपराध होता है। 

 बाल अपराध में कौन-कौन से कृत्य शामिल हैं -

 बाल अपराध के स्वरूप को हम उन अपराधों से सरलता पूर्वक समझ सकते हैं जिनको बालक या किशोर करते हैं। इस प्रकार के कुछ अपराध निम्न प्रकार हैं --

1. चोरी करना।
2. झूठ बोलना।
3. नशा करना।
4. जेब काटना।
5. झगड़ा करना। 
6. सिगरेट पीना वह भी कर करना।
7. तोड़फोड़ करना
8. दूसरों पर आक्रमण करना।
9. अपराधियों के साथ रहना
10. विद्यालय से भाग जाना।
11. कक्षा में देर से आना।
12.छोटे बालकों को तंग करना
13. बड़ों का निरादर करना
14. दीवारों पर उचित अनुचित बातें लिखना हुए के।
15. अड्डे और शराब खानों में जाना।
16. चोर, डाकू, आवारा, और बदचलन व्यक्तियों से मिलना      जुलना।
17. बिना आज्ञा के घर से गायब हो जान।

बाल अपराधी कि विषेसताये --

 मनोवैज्ञानिक क्लासमेयर, गुडविल, अलिस  एवं कुप्पुस्वामी के बताए अनुसार --

 गठा हुआ और पुष्ठ शरीर
 जिद्दी
स्वार्थी
साहसी
बहिर्मुखी
अपराधी
आक्रमणकारी
प्रेम ज्ञान नैतिकता का अभाव
संभोग में क्रूरता
व्यवहार में व्याकुलता
शीघ्र गुस्सा होना
दूसरों को चुनौती देना
दूसरों पर संदेह करना
आज्ञा न मानना 
 कम पढ़ना
वर्तमान का आनंद लेने में विश्वास करना
भविष्य की चिंता नहीं करना 




क्या कारण हैं बाल अपराध के --
( causes of delinquency )

 बाल अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं इसके कई कारण है. इस बारे में मेडिसिन एवं जॉनसन कहते हैं कि सामाजिक समस्या के रूप में बाल अपराध में वृद्धि होती हुई नजर आ रही है यह वृद्धि कुछ तो जनसंख्या की वृद्धि के परिणाम स्वरूप तथा कुछ जनसंख्या के अधिक भाग के शहरी वातावरण में रहने के परिणाम स्वरुप हो रही है।
 टीवी, मीडिया, मोबाइल आदि प्रसारित होने वाले क्राइम सीरियल, शहरों में कच्ची बस्तियों का विस्तार, खराब सामाजिक वातावरण, बिगड़ते पारिवारिक माहौल,  संवाधीनता, मां-बाप की अत्यधिक व्यस्तता, आदि ऐसे प्रमुख कारण है जिन्होंने बाल अपराधों को बढ़ावा दिया है। गांव की तुलना में शहरों में तेजी से बाल अपराधों के बढ़ने के पीछे यही कारण दिखाई देते हैं। मीडिया के प्रभाव के कारण बच्चे समय से पहले जवान हो रहे हैं, और यौन अपराधों की ओर बढ़ रहे हैं। आर्थिक युग के कारण हर मां-बाप पैसों के पीछे भाग रहें है। वह बच्चों को कम समय दे पा रहे हैं।

अगर हम बाल अपराधों की वृद्धि की व्याख्या  करना चाहते हैं,  तो पहले बाल अपराध के कारणों को ढूंढना पड़ेगा बाल अपराध के कारणों के आधार पर ही इसकी व्याख्या की जा सकती है। ऐसे अनगिनत फैक्टर है जो बाल अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं इनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं --


 1. पारिवारिक कारण। 
 2. सामाजिक कारण
 3. विद्यालय संबंधी कारण।
 4. मनोवैज्ञानिक कारण 
 5.  संवाद संबंधी कारण।
 6.  सांस्कृतिक  कारण।
 7. अनुवानसिक कारण
 8. शारीरिक कारण 

1. पारिवारिक कारण - ( family related causes )

 -- टूटे हुए परिवार।
 -- अनैतिक परिवार । 
 -- निर्धन परिवार।
 --  झगड़ालू परिवार।
 -- परिवार द्वारा तिरस्कृत बच्चे। 
 -- परिजनों की अनुपस्थिति वाले बच्चें। 
 -- बच्चों से दुर्व्यवहार करने वाले परिवार।

 टूटे हुए परिवार -

 कुछ परिवार टूटे हुए भागने एवं बर्बाद परिवार के रूप में होते हैं। यह ऐसे परिवार होते हैं जिन्हें जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं होते। धनोपाजर्न करने वाले सदस्यों की संख्या भी कम होती है। ऐसी हालत में यह परिवार टूट जाते हैं अथवा भंग हो जाते हैं। आप समझ सकते हैं कि ऐसे परिवार में जन्म लेने वाले बच्चों की परवरिश किन हालातो में होती है..? ऐसे परिवारों के वयस्क सदस्य एवं बच्चे अनैतिकता का मार्ग अपना लेते हैं। वे अपराध करने की ओर अग्रसर होते हैं। ऐसे परिवार के बच्चों को ना अच्छी शिक्षा मिल पाती है ना अच्छा माहौल और वह धीरे-धीरे बाल अपराधी का रूप धारण कर लेते हैं। अपनी जरूरत के लिए उन्हें अपराध की और मुड़ना पड़ता है।
 मनोवैज्ञानिक जॉनसन ने बाल अपराधी बालकों के आंकड़े एकत्रित करके यह पाया कि उनमें से 55% बालक ऐसे थे जो टूटे हुए परिवारों से थे। इनके अतिरिक्त प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हेली और ब्रनर ने अमेरिका के शिकागो और बोस्टन नगरों में 4000 बालकों का अध्ययन किया। अध्ययन में उन्होंने पाया कि इनमें से 2000 बालक टूटे हुए भग्न परिवारों से थे।

   
                प्रेरणा डायरी - आपका साथी।
 
 अनैतिक परिवार --

 ऐसे परिवार जिनके सदस्य गलत रास्तों पर चलते हैं और अनैतिक कार्य करते हैं, उनके बच्चे भी उन्हीं के समान होते हैं। आपने भी देखा होगा कि जो मां-बाप चोरी करते हैं उनके बच्चे भी अक्सर चोरी के कार्यों में लिप्त पाए जाते हैं। जिन परिवारों के सदस्य धूम्रपान करते हैं उनके बच्चे भी अक्सर धूम्रपान की लत का शिकार हो जाते हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक में बिल इलियट ने अमेरिका के सनातन फार्म पर अनेक अपराधी लड़कियों का अध्ययन किया। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि 68% लड़कियां ऐसी थी जो अनैतिक परिवारों की थी।

 निर्धन परिवार --

 दोस्तों, निर्धन होना कोई बुरी बात नहीं है। पर यह भी सही है की निर्धनता अनेक अपराध और अनैतिक कार्यों को जन्म देती है, खासकर बच्चों को क्योंकि उनमें समझ का अभाव होता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कुप्पुषामी भी इसी बात का समर्थन करते हुए कहते हैं कि  "बालकों में अपराधी चरित्र का विकास करने में निर्धनता एक अति महत्वपूर्ण कारक है।" निर्धन परिवार के बच्चों को प्रारंभ से ही खाने की वस्तुओं तक की चोरी करनी पड़ती है या भीख मांगने के लिए बाध्य होना पड़ता है। कुछ परिवार ऐसे होते हैं जिनमें बालको और बालिकाओं को भोजन तो मिल जाता है और धन अभाव के कारण उनकी अन्य इच्छाएं पूर्ण नहीं हो पाती। बालक और बालिकाएं अपनी जरूरी इच्छाओं के लिए धन की आवश्यकता महसूस करते हैं. एट बालक बालिकाएं चोरी और व्यभिचार  करके धन प्राप्त करने लगते हैं। गुलूक ( glueck) महोदय ने 500 बाल अपराधियों का अध्ययन करके यह खोज की कि उनमें से 66 ऐसे परिवारों के थे जिनकी दैनिक आवश्यकता पूरी नहीं होती थी। और 252 ऐसे परिवारों के थे जो बड़ी कठिनाई से अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करते थे। बर्ड महोदय ने भी अनेक बाल अपराधियों का अध्ययन किया उन्होंने अपने अध्यायों में साफ तौर पर यह पाया कि उनमें से आधे बच्चे निर्धन या अत्यधिक निर्धन परिवारों से थे। यह बातें इस तत्व को प्रमाणित करती हैं की निर्धनता भी बाल अपराधों को जन्म देती है।

 झगड़ालू माहौल वाले परिवार --

 जिन परिवारों में भाई- बहन, माता-पिता , एवं परिवार के अन्य सदस्य आपस में झगड़ा करते हैं उन परिवारों के बच्चे भी झगड़ालू और अपराधी किस्म के बन जाते हैं। कभी-कभी परिवारों में झगड़ा होना आम बात है। लेकिन ऐसे परिवार जिनमे रोज और दिन भर झगड़ालू माहौल रहता है वहां बच्चों पर विपरीत असर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे माहौल में बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। बच्चों पर शिथिल नियंत्रण होने के कारण वे आपराधिक मार्ग पर चलने लगते हैं। घर का माहौल खराब होने के कारण वह अधिकतर समय गलियों में घूमते हैं जिससे उनकी संगति गलत हो जाती है। वह अनैतिक और आपराधिक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।

त्रिरत्स्कृत बच्चे --

 जो बच्चे अपने बड़ों के द्वारा एवं मां-बाप के द्वारा बात-बात पर डांटे फटकारे और पीटे जाते हैं इस व्यवहार को तिरस्कृत व्यवहार कहा जाता है। बच्चों के प्रति ऐसा रुखा व्यवहार बाल अपराध को जन्म और बढ़ावा देता हैं। अनेक परिवार ऐसे होते हैं जिनमें  सौतेली माँ या सौतेले पिता होते हैं जो अपने बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उन्हें मां-बाप के प्यार के स्थान पर मार मिलती है। जिन बच्चों को परिवार से प्यार मिलना चाहिए उन बच्चों को गलियों में घूमने वाले आवारा लोगों का प्यार मिलता है और वह कुछ समय बाद उनके द्वारा बताए हुए अपराध के कार्यों में लिप्त होने लगते हैं। यह भी बाल अपराध का एक कारण है।

 परिजनों की अनुपस्थिति वाले परिवार --

 बहुत से परिवारों में बच्चों के माता एवं पिता की मृत्यु हो जाती है. या माता-पिता में से किसी एक सदस्य की भी मृत्यु या अनुपस्थिति में उसे बालक पर परिवार का नियंत्रण शिथिल हो जाता है। स्वतंत्रता प्राप्त हो जाने के कारण वह घर से बाहर इधर-उधर घूमने लगता है। और बुरी संगति में पड़ जाता है। इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि बालक अपराध के मार्ग का अनुगमन करने लगता है। कई अध्ययनों में यह तथ्य साबित हुआ है की माता-पिता की अनुपस्थिति में बालक निश्चित रूप से अपराध की ओर प्रवृत जाता है, क्योंकि उसे सही रास्ता, सही सलाह, और सही मार्ग दिखाने वाले परिजन की कमी होती है। उसके मन में भी यह बात घर कर जाती है की मां-बाप ही नहीं है तो अच्छा जीवन की कर क्या करना है। मनोवैज्ञानिक मेडिसिन इसका एक उदाहरण देते हुए कहते हैं कि "'नीग्रो जाति में पिता की मृत्यु दर सबसे अधिक होती है इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि नीग्रो जाति में बाल अपराध की दर सबसे अधिक है।"'

 बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले परिवार --

 भारतीय मनोवैज्ञानिक कप्पास्वामी बताते हैं कि बाल अपराध का सबसे महत्वपूर्ण कारक बालक के द्वारा परिवार के दुर्व्यवहार को अनुभव किया जाना है। यदि बालक को परिवार में बड़े व्यक्तियों द्वारा सदैव डाटा फटकार या मारा पीटा जाता है अथवा उसमें बार-बार दोष निकाला जाता है और आलोचना की जाती है तो वह अत्यधिक उदासीन और चिंता ग्रस्त हो जाता है। वह परिवार से समायोजन करने का प्रयास करता है जब वह ऐसा करने में असफल हो जाता है तब विद्रोह कर उठना है और ऐसा सामाजिक कार्य करने लगता है। जैसे - विद्यालय से भागना,  पलट कर जवाब देना, घर से रुपए चोरी करना, आभूषण चोरी करना, बड़ों की आज्ञा नहीं मानना और अपने साथ हो रहे दुर्व्यवहार के बदले में परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार करना। 

2. सामाजिक कारण --

-- साथी।
-- अवकाश।
-- नागरिक वातावरण।
-- गंदी बस्तिया
-- यूद्ध।
-- देश का विभाजन।

साथी --

 दोस्तों कोई भी बालक अकेले बहुत कम अपराध करता है।  उसके साथ इस कार्य मे कोई ना कोई  साथी जरूर होता है। ब्लू ब्लू ने अपने अध्यायों में यह सिद्ध किया है कि जिन 500 अपराधी बालकों का उन्होंने अध्ययन किया उनमें से 95% बच्चे ऐसे थे जो शराबियों जारी और व्यभिचारियों एवं गुंडो की संगति में रह रहे थे। प्रसिद्ध विद्वान हिल बताते हैं कि अपराधी बालक किसी ने किसी गुट के सदस्य अवश्य होते हैं वह अकेले में कार्य काम ही करते हैं। गलत कार्य करते समय उनके साथ बिगड़े बच्चों का झुंड होता है। आते हम यह कह सकते हैं कि बालक बुरे साथियों के संगति में पड़कर अपराध करते हैं।

अवकाश --

 यदि बालकों को अपना अवकाश बिताने के लिए मनोरंजन या खेल के ऊंचे साधन प्राप्त नहीं है तो उनका अनुचित दिशा में जाना संभावित होता है। बोगत ने अपने अध्यायों से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि बाल अपराध अधिकतर या तो शनिवार और रविवार को होते हैं या चार और पांच बजे के बीच होते हैं क्योंकि इस समय बालक प्राय खाली रहते हैं।

 नागरिक वातावरण

 वर्तमान समय में  महानगरों, बड़े शहरों का वातावरण अत्यधिक कृत्रिम, दूषित, और अनैतिक है। यहां की गंदी बस्तियों में अनेक बाल अपराध रोज जन्म लेते हैं। इन शहरों में अपराध को प्रोत्साहन देने वाले सभी साधन विद्वान होते हैं जैसे मदिराल है सस्ता मनोरंजन का मुख चलचित्र जुआ सट्टा वेश्यालय,। जिन बालको पर माता-पिता का नियंत्रण नहीं होता, और जिनकी संगति गलत होती है वह धीरे-धीरे इनके प्रभाव से वंचित नहीं रह पाता परिणाम तो है वह कुमार पर चलने लगता है।

 गंदी बस्तियां  --

 यह तो प्रेम मन ही जाता है की गंदी बस्तियां ने केवल बाल अपराध बल्कि अन्य अपराधों को भी जन्म देती हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मेडिसिन एवं जॉनसन ने लिखा है कि "'समाज शास्त्रियों का तर्क है कि अधिकांश बाल अपराधी गंदी बस्तियों के होते हैं।"
 उनकी इस कथन को सत्य सिद्ध करने के लिए 100 एवं मैगी ने अमेरिका के लगभग 25 नगरों के बाल अपराधों का अध्ययन किया और परिणाम स्वरूप इस निष्कर्ष पर पहुंचे की गंदी बस्तियों में बाल अपराधों की तरह सबसे अधिक होती हैं। गंदी बस्तियों का माहौल घुटन भरा, सुविधाओं और बच्चों को खेलने के लिए स्थान का आभाव तथा स्वस्थ मनोरंजन कि कमी, अपराधों की अधिकता, नशे और सट्टेबाजी का अधिक प्रचलन होता है जो बालकों को भी अपराधों की ओर ढकाल देता है।

युद्ध --

 तीन कर्म से युद्ध बाल अपराधों को जन्म देते हैं। पहले जिन बालकों के अभिभावक युद्ध क्षेत्र में चले जाते हैं उनकी ठीक से देखभाल नहीं हो पाती है। दूसरा जो मनुष्य युद्ध में मारे जाते हैं उनमें से अधिकांश के बच्चे असहाय हो जाते हैं, उनका सही मार्गदर्शन करने वाले नहीं रहते। तीसरा जिन देशों पर बम गिराए जाते हैं एवं युद्ध होता है उनमें अनेक बच्चे अनाथ हो जाते हैं यह सभी बच्चे अपने पेट की पूर्ति के लिए किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करने में संकोच नहीं करते हैं। हम आए दिन अपनी आंखों के सामने देखते हैं कि कई देश युद्ध की जंजाल में जाकर जाते हैं ऐसे देश में सबसे बड़ी विभीषीका  बच्चों पर आती है. हजारों लाखों की संख्या में युद्ध ग्रस्त देशों में बच्चे अनाथ हो जाते हैं जिनका सही मार्गदर्शन करने वाला जिनका पेट पालने वाला और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला कोई नहीं बचता. स्वाभाविक है ऐसे बच्चे अपराध में लिप्त हो जाते हैं और बाल अपराधी बन जाते हैं।

 देश का विभाजन --

 दोस्तों युद्ध की भांति ही कई देशों का आपस में विभाजन होने से लाखों की संख्या में बच्चे अनाथ हो जाते हैं। ऐसे बच्चे जल्दी अपराधों में लिप्त हो जाते हैं क्योंकि उनके पास अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के कोई साधन उपलब्ध नहीं होते ना उनकी उचित देखभाल हो पाती है। भारत-पाकिस्तान विभाजन इसका उदाहरण है। भजन के कारण देश में हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिक झगड़ों का टाटा लग गया था इसमें वयस्कों के अलावा किशोर ने भी भाग लिया था फल स्वरुप को समय तक बाल अपराधों की दरों में तेजी से इजाफा हुआ था। हजारों की संख्या में भूखे और असहाय बच्चे बाल अपराधी बन गए।

   विद्यालय संबंधी कारण

-- स्थिति
--नियंत्रण का अभाव
-- खेल एवं मनोरंजन का अभाव
 --परीक्षा प्रणाली

 स्थिति --

 आप और हम अक्सर यह देखते हैं कि हमारे विद्यालय अच्छे और उचित स्थान पर स्थित नहीं होते हैं। जनसंख्या के दबाव में उपयुक्त स्थान का अभाव होता है. ऐसे में घटिया स्थान पर विद्यालयों का निर्माण किया जाता है। विद्यालय अक्षर ऐसे स्थान पर होते हैं जो दूसरे कोलाहल पूर्ण भागों में स्थित होते हैं बालक वहां जाते हुए प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के मानवीय कृत्य देखते हैं। अपराध लूटपाट और गुंडागर्दी होते हुए देखते हैं। ऐसे में बहुत से बालक उनसे प्रभावित होकर उन्हें को अपने जीवन का अंग बना लेते हैं।

 नियंत्रण का अभाव --

 आजकल के विद्यालय शिक्षा की दुकान हो गई हैं, जिनमें धन प्राप्त करने के लिए संख्या की ओर ध्यान दिया जाता हैं। ऐसे विद्यालयों में बालको पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होता फल स्वरुप में अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी घूमने के लिए सिनेमा देखने के लिए और आवारा गर्दी करने के लिए जा सकते हैं इस प्रकार के बालक कम से बाल अपराध के मार्ग को ग्रहण कर लेते हैं।

 खेल एवं मनोरंजन का अभाव --

 बालकों के स्वस्थ विकास के लिए खेल एवं मनोरंजन दोनों बेहद जरूरी होते हैं। यह इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि खेल और मनोरंजन बालकों के शारीरिक और मानसिक विकास में योगदान देते हैं। भारत में आजकल वह वाही लूटने के लिए अनेक विद्यालयों को स्वीकृति प्रदान की जाती है लेकिन इस बात का रंच मात्र भी ध्यान नहीं रखा जाता कि उनके पास बालकों के लिए पर्याप्त खेल स्थान है या नहीं। मनोरंजन के साधनों का पर्याप्त विकास है या नहीं। विद्यालय प्रबंधन भी खेल पर धन खर्च करना मूर्खता समझते हैं खेल की व्यवस्था ने होने के कारण बालकों के अनेक संवेग दमित अवस्था में पड़े रहते हैं जो उभरने पर अति घातक सिद्ध होते हैं. यह दमित इच्छाएं बालकों को समायोजित कर देती हैं और उनको विभिन्न प्रकार के अपराधों की ओर प्रेरित कर देती हैं।

 परीक्षा प्रणाली --

 हमारे विद्यालय के छात्रों की परीक्षा लेने के लिए जी प्रणाली का उपयोग किया जाता है उसमें अनेक दोष हैं। यह प्रणाली मुख्य रूप से बालकों को परीक्षा भावनो में अनुचित साधनों का प्रयोग करने का अवसर देती है। यदि उनको ऐसा करने से रोका जाता है तो वह मारपीट और अभद्रता पर उतारू हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ बालक ऐसे भी होते हैं जो परीक्षा में असफल होने के कारण घर से भाग जाते हैं या आत्महत्या कर लेते हैं। आज भी हम रोज खबरें पढ़ते हैं की परीक्षा में असफल होने पर कितने बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि हमारी परीक्षा प्रणाली बाल अपराधों को बढ़ावा देने का कार्य कर रही है। 

 मनोवैज्ञानिक कारण

-- निम्न बुद्धि।
--मानसिक रोग।
--अवरुद्ध इच्छा
--निराशा।
-- संवेगात्मक असंतुलन।

 निम्न बुद्धि --

 निम्न बुद्धि वाले बालकों में अपराधों की प्रवृत्ति का सरलता से विकास होता है। निम्न बुद्धि वाले बालकों को उचित बढ़ावा नहीं मिलने पर वह कौन था और हीन भावना के शिकार हो जाते हैं. ऐसे बालक जल्दी अपराध ग्रस्त होते हैं।

 मानसिक रोग --

 बालकों के मानसिक रोग उनको अपराधी बनने के लिए उत्तरदाई होते हैं इन रोगों से एक ग्रस्त बालकों में मानसिक तनाव विचार शून्यता ए संतुलन अंतर्द्वंद आदि उत्पन्न हो जाते हैं ऐसी दशा में वह अपना आत्म नियंत्रण को देते हैं और बाल अपराध कर बैठते हैं।

 निराशा  --

 वर्तमान प्रतिद्वंद्विता के माहौल में बच्चों में निराशा तेजी से जन्म ले रही है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हरलॉक कहते हैं कि "'आक्रमण निराशा की सामान्य प्रतिक्रिया है बालक जितना अधिक निराश होता है उतना ही अधिक आक्रमणकारी हो जाता है।"' इस कथन के आधार पर हम कह सकते हैं की निरंतर निराशा रहने वाला बालक कमानी आक्रमणकारी बनकर बाल अपराध का शिकार हो जाता हैं।

 संवेगात्मक संतुलन --

 बाल अपराधों के मनोवैज्ञानिक कर्म में सबसे प्रबल कारण संवेगात्मक असंतुलन है। संवेगात्मक के असुरक्षा, अपर्याप्तता  हीनता की भावना, प्रेम और सहानुभूति का अभाव,  कठोर अनुशासन, उचित देखरेख का अभाव, बालक के व्यक्तित्व और व्यवहार को समायोजित कर देते हैं और उसे अपराध की ओर धकेल देते हैं। मनोवैज्ञानिक हिली एवं ब्रनर ने अनेक अपराधी बालकों का अध्ययन किया इन अध्ययनों में उन्होंने पाया कि 91 में प्रतिशत बालकों ने यह बयान दिए कि उनके जीवन के कटु अनुभवों ने उन्हें इतना संवेगात्मक असंतुलन उत्पन्न कर दिया कि वह मानसिक रूप से परेशान हो गए और अपराधों को करने लगे। 

 संवाद संबंधी कारण 

 कॉमिक बुक्स--

 इन पुस्तकों का उद्देश्य बालकों का मनोरंजन करना होता है लेकिन इन पुस्तकों की विषय सामग्री काल्पनिक होने के अलावा आक्रमणकारी और उत्तेजित करने वाली होती है। अनेक मनोवैज्ञानिकों ने यह तर्क दिया है की कॉमिक बून की सामग्री बाल अपराधों को जन्म देती है।

 सस्ते उपन्यास एवं पत्रिकाएं --

 इन पत्र पत्रिकाओं में मुख्य रूप से युवकों और युक्तियां के यौन संबंधों पर आधारित प्रेम कथाओं को प्रकाशित किया जाता है। ऐसी कथाएं बच्चों पर गलत प्रभाव डालते हैं और वह यौन अपराधों में लिप्त हो जाते हैं।

 चलचित्र एवं टेलीविजन --

 आजकल चलचित्र एवं टेलीविजन पर बच्चों से संबंधित मोवियां कामवासनाओं से ग्रसित एवं कुत्र्शित कार्यों को प्रदर्शित करते हैं। टेलीविजन के संबंध में अब तक तीन विस्तृत अध्ययन हुए हैं 1958 में इंग्लैंड में 1961 में अमेरिका में और 1962 में जापान में। अध्ययनों के आधार पर चलचित्र एवं टेलीविजन को भी बाल अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया। मनोवैज्ञानिक जॉनसन कहते हैं कि मैं विश्वास करता हूं कि "'तरुण और परेशान किशोरी के लिए टेलीविजन बाल अपराध का प्रारंभिक प्रशिक्षण केंद्र है।"'

 सांस्कृतिक कारण --

 आधुनिक युग में हमारा जीवन और हमारी संस्कृति कृत्रिम हो गई हैं। हमारे जीवन से अर्थ और महत्व का लोप हो गया है। यह बालको और किशोर की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में असफल हो रही है अतः बालक और किशोर उसे अपना संबंध विच्छेद करके समाज विरोधी कार्यो में संलग्न होते दिखाई दे रहे हैं।

 बाल अपराध का निवारण --

 बाल अपराध के निवारण निरोध या रोकने के लिए परिवार विद्यालय समाज और राज्य मिलकर अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकते हैं, जैसे --

1. उत्तम वातावरण का निर्माण --


 हमें अपने बालकों के लिए परिवार में उत्तम वातावरण तैयार करना चाहिए, ताकि बच्चों में अच्छे संस्कार जन्म ले। परिवार के सदस्यों के मध्य पारस्परिक सहयोग होना चाहिए। समायोजन और सहानुभूति का माहौल होना चाहिए। यदि ऐसा माहौल है तो बाल अपराध कम जन्म लेंगे।

2. छोटा परिवार सुखी परिवार --

 छोटा परिवार सुखी परिवार होता है, क्योंकि छोटे परिवार के सदस्यों में आपसी आत्मीयता और निकटता की भावना होती है। एक दूसरे की भावनाओं की कद्र की जाती है और एक दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखा जाता है। छोटे परिवार में बच्चों की उचित देखभाल होती है तथा उन्हें अच्छा मार्गदर्शन प्राप्त होता है। आते ऐसे परिवार में बच्चों के बीच बाल अपराध की भावनाओं का जन्म होना काफी कठिन होता है।

3. उचित निर्देशन ( guidance )

 बालक ज्ञान और समझदारी की कमी के कारण बाल अपराध की ओर अग्रसर होते हैं। अच्छी अधिकतर बच्चों को उचित गाइडेंस नहीं मिल पाता। माता-पिता और परिजनों को चाहिए कि वह अपने बच्चों का समय-समय पर निर्देशन करते रहें। जिन बालकों को उचित निर्देशन प्राप्त होता रहता है वह बाल अपराध की ओर नहीं जाते हैं।

4. बालकों के प्रति उचित व्यवहार --

 माता-पिता का व्यवहार बालकों के प्रति उचित एवं सहानुभूति पूर्ण होना चाहिए। बालकों को ने तो अधिक लाड प्यार करके बिगड़ना चाहिए और ने ही अधिक कठोर अनुशासन में रखकर उनकी इच्छाओं का दमन करना चाहिए। जिन बालकों को उचित व्यवहार में मिलता है उनमें अपराध प्रवृति का विकास नहीं हो पता है।

5. अध्ययन की व्यवस्था --

 परिवार में बालकों के अध्ययन के लिए उचित व्यवस्था होनी चाहिए इस उद्देश्य उनके लिए शांत और एकांत तथा सुरक्षित वातावरण होना चाहिए ऐसे स्थान में अध्ययन करके उनके मस्तिष्क का क्रमिक विकास होता चला जाएगा, जो उनको सदमार्ग की ओर अग्रसर करेगा। अध्ययन की उचित व्यवस्था से बालकों में समझदारी का विकास होता है। अच्छे बुरे की समझ विकसित होने पर बालक अपराध की ओर अग्रसर नहीं हो पाते हैं।

6. बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति --

 माता-पिता को बालकों की सभी उचित आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। जब बालक की आवश्यकता है पूरी नहीं होती है तो वह उन्हें पूरा करने के लिए गलत रास्तों का इस्तेमाल करते हैं। बच्चों की उचित इच्छाओं का दमन करने के स्थान पर उन्हें समझ कर उन्हें शांत करना चाहिए, ताकि बालक अपराध मार्ग की ओर अग्रसर ना हो।



 

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