प्रेरणा कि प्रमुख विधियाँ कौन कौन सी है..? (method of motivation)



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  प्रेरणा डायरी (ब्लॉग )

https://wwwprernadayari.com

Hindaun, Rajasthan, 


दोस्तों, नमस्कार। 

 "प्रेरणा डायरी (motivation dayri) मे ,आप  पढ़ रहे है- प्रेरणा...और प्रेरणा के हर पहलू को जान रहे है। पिछली 17 पोस्टों में हम इस पर चर्चा कर चुके है। पर एक बात जो, जरूरी है आपको भी बता दिये देता हूँ । कि हमें प्रेरणा कि परिभाषा के साथ साथ ही इसे प्रभावित करने वाले कारक, प्रेरणा के सिद्धान्त, प्रेरणा की विधियों, आदि को भी समझना जरूरी है तभी आप  प्रेरणा को भलि- भाँति जान पायेंगे, और जितना अच्छा आप किसी चीज को जानेंगे, उतना अच्छा आप समझेंगे । जब तक जानेंगे नहीं, तब तक समझेंगे नहीं। आज कि पोस्ट में हम बात करेंगे प्रेरणा की विधियों की। आप ये जानेंगे की आखिर वो कौन कौन सी विधियाँ है जो प्रेरणा (motivation) प्राप्त करने मे हमारे लिए मददगार है। आगे बढ़ने से पहले में एक परिभाषा का  उल्लेख करना चाहता हूँ । जो मनोवैज्ञानिक mursell ( p. 116) दी है। मरसेल ने लिखा है। " प्रेरणा यह निश्चित करती है कि लोग कितनी अच्छी तरह से सीख सकते है, और कितनी देर तक सीख सकते है।" यानि आप जितने प्रेरित होंगे उतना अच्छा अधिगम ( learning) होगा। और ऐसा इन विधियों कि सहायता से किया जा सकता है। प्रेरणा की 7 विधियाँ बहुत लाभकारी सिद्ध हुई है। आईये मैं आपको इन विधियों से परिचित करवाता हूँ --


 टेबल ऑफ़ कंटेंट -

1. रुचि विधि।

2. सफलता विधि।

3. प्रतिद्वंद्विता विधि।

4. सामाजिक गतिविधियों में भाग।

5. प्रशंसा विधि।

6.  खेल विधि

7.  परिणाम का ज्ञान।

8. आवश्यकता का ज्ञान।


1. रूची विधि (इंटरेस्ट मेथड़ )  : --

रूचि (Interest) । ये प्रेरणा प्रदान करने कि प्रथम विधि है। यह काफी लोकप्रिय भी है, क्योंकि यह रूचि सिद्धांत पर आधारित है। यह विधि एक छात्र को पढ़ाई के क्षेत्र में, और एक व्यक्ति को व्यवसाय या कार्य का चयन समय उन क्षेत्रों को चुनने की सलाह देती है जिनमें उनकी रुचि होती है। अर्थात ऐसा काम 'चुनो' जिसमें आप कि रुचि हो। इस टॉपिक "रुचि" के महत्व को मैं पहले भी कई बार इंगित कर चुका हूँ।  "सफलता और रूचि" इन दोनों का गहरा सम्बन्ध है या यों कहे कि चोली -दामान का साथ है- दोनों का। अगर किसी कार्य को आपने शुरू कर दिया और उसमें आपकी रुचि नहीं है। तो आपके सफल होने के चांस बहुत कम है। एक बालक को भी तभी पाठ याद होता है जब उस पाठ में उसकी रूचि होती है। आप को भी अपने काम में आनन्द तब आयेगा जब उस काम में आपकी रुचि होगी।अपनी रूचि वाला कार्य करने से हमारे उस काम में सफल होने कि संभावना काफी बढ़ जाती है। अत: आप पढ़ाई,कोई नया कार्य, व्यापार, व्यवसाय करते समय उसी विषय या छेत्र का दामन थामे जिसमे आपकी रूचि है, तो आप नि श्चित तौर पर सफल होंगे..। यकीन रखें...!

रुचिया हमें किस तरह सफल या असफल बनती हैं इसे मैं एक परिवारिक मित्र के बेटे का उदाहरण देकर समझता हूं। मेरे एक परम मित्र हैं रमेश जी। पेशे से शिक्षक है। उनके बेटे राकेश ने 11के बाद नीट (NEET) कि तैयारी को फैसला किया। जबकि विज्ञान विषय में उसकी रुचि नहीं थी। बिना गंभीर विचार विमर्श के इतना बड़ा फैसला लिया। बिना अपनी रुचियों को जाने किया। ऐसा उसने अपने मां-बाप के कहने और दोस्तों की देखा देखी किया।अच्छे कोर्सों में एडमिशन लेना भी स्टेटस कि बात हो गयी है। मां-बाप को अपने बच्चों को यह आजादी देनी चाहिए कि वह अपनी रुचि के आधार पर अपना क्षेत्र स्वयं चुने को अपने बच्चों को रुचियों के आधार पर अपना करियर और कार्य क्षेत्र चुनने कि इजाजत देनी चाहिए । अब राकेश का जो हाल है- ना वो नीट कर पाया, और ना ही उसके पास अपनी पसंद का काम शुरू करने का सपोर्ट और संसाधन रहे। काफी समय तक वह तनावग्रस्थ भी रहा है। इन सब बातों में ही उसके जीवन के अमूल्य 38 साल गुजर गए। 2 साल उसने कुछ नहीं किया , कोई बात नहीं..। क्योंकि उसका स्वास्थ्य खराब था। 2 साल बाद, यानी 40 वर्ष की उम्र मे। अपनी जिंदगी के 40 में पड़ाव पर। अपनी रुचि से अपना एक स्टोर खोला है।इस बार राकेश ने अपनी रुचि के क्षेत्र को चुना है। दुकान और स्टोर जैसी चीज खोलने के कार्य मे उसकी शुरू से ही रुचि थी। रुचि होने के कारण ही उसे काम को उसने दिल से किया, हमें अच्छा सेल्स मेंन था, ग्राहकों से अच्छे से बात करता था, वह बोलने की कला में एक्सपर्ट। तन मन धन से जुड़कर उसने इस काम को अंजाम दिया।आज उसका स्टोर काफी अच्छा चलता है। स्थान ग्राहकों से अच्छे से बात करता थाआज भी खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चे उन विषयों को अपने आध्यन के लिए चुन लेते है, जिनमें उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है...! अब बताये आप की कैसे motivation/प्रेरणा प्राप्त होगी...?और कैसे सफ़लता (success) प्राप्त होगी...? , 

दोस्तों रुचि विधि इसी बात पर बल देती है। कि आप जो कार्य करें उसमें अपनी रुचियों को प्राथमिकता दें। पढ़ाई, विभिन्न कोर्सों, व्यवसायों, रोजगारों और विभिन्न क्षेत्रों को चुनते समय अपनी रुचियां को सर्वोच्च स्थान पर रखें। आप जिस क्षेत्र में रुचि रखते हैं उस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने का प्रयास करें, क्योंकि रुचि ही वह ताकतवर चीज है जो हमें प्रेरित कर, सफ़ल बनाती है। रुचि से आपके अंदर प्रेरणा(motivation) कि भावना जाग्रत होती है। रुचि और प्रेरणा का जहाँ मिलन होता है, वहाँ आनन्द ही आनन्द होता है अर्थात सफ़लता ही सफ़लता होती हैं । मैं आज आपको सफ़लता का एक सूत्र/tips/टिप्स देता हूँ। इसे हमेसा अपने माइंड में सैट रखें--

रूचि + प्रेरणा = 100% सफ़लता । 

Interest + motivation =100% success

I. M. S. Formula 

तो आपको अपनी पढाई, अपना पाठ्यक्रम अपनी रूचि के आधार पर तय करना है। आपको अपना करोबार (business) रुचि के आधार पर तय करना है। आपको अपना वयवसास रुचि के आधार पर चुनना है, क्योंकि जिस कार्य में रुचि होती है उस काम को आदमी दिल से करता है। अपने काम से प्यार करता है। इसीलिए उसे सफलता मिलती है और लगातार मिलती रहती है। 

    फोटो - केदार लाल, लेखक प्रेरणा डायरी साइट।

आइये अब हम चलते हैं प्रेरणा की अगली विधि की और अगली विधि है --'सफ़लता विधि'। 

 

2. सफ़लता विधि (सक्सेस ) 


यह प्रेरणा प्रदान करने कि दूसरी बिधि है। और प्रेरणा के लिए बहुत लाभदायक है। इसमें बालक को सफलता के लिए प्रोत्साहित किया जाता है उसे सफलता उसका महत्व, प्रभाव आादि कि जानकारी देकर उसे खुद अपने कार्य या पढ़ाई में सफल होने के लिए प्रेरित  करते है।कहते है एक बार छोटी सफलता मिलने पर आप आगे अधिक बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि पहली छोटी सफलता ने आपको उत्साहित( motivate) कर दिया और आपको नई जोश और ऊर्जा से भर दिया। एक बालक या व्यक्ति जिसे आप सफल होते देखना चाहते हैं, उसे प्रोत्साहित करना चाहते हैं तो आप उसे लगातार सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरणा देते रहें।मनोवज्ञानिक Frandsem ( p.222) फ्रेडसन इसके महत्व को इस्पट करते हुऐ कहते है कि "सीखने के सफल अनुभव अधिक सीखने, कि प्रेरणा देते हैं।" सफलता विधि इसी प्रकार की प्रेरणा लेने पर बल देती है। एक साथ बड़ी सफलता हासिल करने के स्थान पर आप छोटी छोटी सफ़लता अर्जित करने के प्रयास करें । आप "पहले छोटी-छोटी सफलता हासिल करें फिर बड़ी सफलता का आनन्द लें" - K. S. Ligree quots मैं आपको एक पढ़ाई से सम्बन्धित उदाहरण देकर बात को और अधिक स्पष्ट करना चाहूंगा। ताकि आप अपनी छोटी- छाटी सफलताओं का महत्व समझे। मान लिजिए आप अपना कोई व्यवसाय शुरू कर रहे हैं या आप एक छात्र हैं और कंपटीशन की तैयारी कर रहे हैं। तैयारी शुरू करते वक्त आपको ज्यादा नॉलेज नहीं होने के कारण आपके बढ़ाओ का सामना करते हैं। लेकिन जैसे ही सिलेबस का एक पाठ तैयार हो जाता है तो दूसरे पाठ को तैयार करते समय आपका जोश और उत्साह बढ़ जाता है । पूरे सिलेबस का पहला पार्ट अच्छे से तैयार होने का अहसास होते ही आपका आत्मविश्वास बढ़ जाता है । अपका जोश बढ़ जाता है।आपको अपने उत्साह में वृद्धि दिखाई देती है । और इसका असर भी नजर आएगा।आप सिलेबस के अगले पाठों सहजता से तैयार कर लेंगे। छोटी-छोटी सफलताएं आपका जूस बनाकर आपको प्रेरित करती है भाग को अधिक जोश और रूचि के साथ तैयार करगे। क्योकि आपको पहले भाग कि छोटी सी सफलता से प्रेरणा (motivatian) मिल गयी। अब आपके सिलेबस का  बाकी का हिस्सा आसान तरीके से तैयार होगा बल्कि आपको अच्छा याद भी होगा।  कुछ माह में ही आपका सिलेबस तैयार कंप्लीट हो जाएगा। इसी प्रकार आप नौकरी का उदाहरण ले सकते है की आप RAS कि तैयारी कर रहें है। आप गौर करना कि अन्य, बहुत ऐसी एग्जाम होंगी जिनमें 30 से 50 सिलेबस वही है जो RAS में है अत: RAS के साथ आप अन्य छोटी Job के लिए एप्लाइ करे जैसे  teacher, LDC, police, आदि।आप ईमानदारी रखेंगे तो सफल होने के चांस हैl और ये छोटी सी सफलता आपको बड़ी सफलता तक पहुॅचायेगी।आपके बड़े लक्ष्य तक पहुँचा देगी। क्यूकि आप अपनी छोटी  सफलता से बड़ी सफलता हासिल करने के लिए मोटीवेट हो गये।आपको मोटीवेशन मिल गया ।पहली सफलता मिलते ही आपका जोश और उत्साह बढ़ गया ।अब आप इस जोश और को अपनी दूसरी बड़ी सफलता कि और अग्रसर कर सकते है । मोटीवेशन कि सफलता विधि हमे यहीं समझाने का प्रयास करती है। 


3. प्रतिद्वन्दिता(compitition) :----


दोस्तों प्रेरणा प्रदान करने कि तीसरी सबसे महत्वपूर्ण विधि है  कॉम्पीटिशन कि भावना। यानी स्टूडेंट हो या अन्य व्यक्ति उसको प्रतियोगिता में भाग लेकर अपने लक्ष्य के प्रति प्रेरित किया जाता है।  इस विधि के स्तेमाल में महत्वपूर्ण बिन्दु यही है प्रतियोगिता करते वक्त सामने वाले प्रतियोगी के विरुद्ध आपके मन में कोई दुर्भावना नहीं आनी चाहिए तभी वह कम्पीटीशन कि श्रेणी में रहेगा ।अन्यथा सम्बन्ध खराब होते देर नहीं लगती।  आज का वातावरण, सामाजिक तानाबान कुछ इस तरह का बन गया है कि प्रतियोगिता न करके दुस्मनी शुरू  हो जाती हैं। आप अपने साथी छात्र के  साथ प्रतियोगीता रखते है तो अपने विचार उसके प्रति सकारात्मक और स्वस्थ रखे। हम साथी प्रतियोगी के लिए अपने मन में नफरत पाल लेते हैं। या कहे कि धीरे धीरे हमारी प्रतियोगिता कि भावना, बुराई कि भावना में बदल जाती है। मेरी प्रेरणा डायरी पढ़ रहे मेरे प्यारे पाठको को में बताना चाहता हु कि आप चाहे पढ़ाई कर रहे हैं या नौकरी कि तैयारी कर रहें है, या व्यापार कर रहे है। आप अपने अन्दर कम्पीटीशन कि शुद्ध भावना रखिए ।प्रेरणा प्राप्त करने और सफलता हासिल करने के लिए यह बहुत जरूरी है। आप अपने जिस मित्र या परिचित के साथ प्रतियोगिता रखते है उससे अपने सम्पर्क अच्छे  रखें। उसको इज्जत दे । उसके गुणों और खुबियों को जाने । उनकी कुछ अच्छी बातें, जो अमल करने लायक हो उन पर अमल करें। कोशिश करें कि उससे ज्यादा बड़ी सफलता प्राप्त करें । उससे बड़े और उच्च पद पर पहुंचे। पर शुद्ध भावना के साथ | तभी जाकर आपका कार्य सिद्ध होगा । एक हमारे बीच का उदाहरण लेकर समझते है। मान लिजिए आप RAS या शिक्षक भर्ती परीक्षा की तैयारी कर रहें है । और आपके साथ पड़ोसी का बेटा  भी तैयारी कर रहा है। वो आप से कम पढ़ता है, स्कूल भी ज्वाइन कर रखा है, परिवार के काम भी करता है, लेकिन फिर भी उसका सलेक्शन हुआ और आप पिछड़ गये । अब आपने कुंठा ग्रस्त होकर उसकी बुराइयाँ शुरू कर दी। गली में आलोचना करने लगे । आपने यह नहीं देखा कि आखिर कैसे उसने इतने कम समय में, इतना सब मैनेज किया और एग्जाम क्लीयर  किया । उसकी अच्छी बात को आपने सींखा नहीं। सुवस्थ प्रतियोगीता नहीं रहने के कारण  उल्टे रिलेशन भी गड़बड़ा गये । दोस्तो हमारी सफलता में कम्पीटीशन किभावना का बहुत बड़ी भूमिका है। यह हमें प्रेरणा (Motivation) देती है। अत: अपने अन्दर स्वस्थ प्रतिद्धन्द्धिता का विकास करें। 



4. सामाजिक कार्यों में भाग (Participation In Social Work) :------


प्रेरणा प्रदान करने कि अन्य महत्वपूर्ण विधियों में "सामाजिक कार्यों में भाग" विधि खासी महत्वपूर्ण विधी है। हालाकि यह विधि अदिकतर् स्कूली छात्रों के लिए प्रयुक्त होती है। इस विधि में बालको को सामाजिक वातिविधियों में भाग लेने के अवसर प्रदान किये जाते हैं । ये अवसर motivation (प्रेरणा), अदिगम्( learning ) के साथ साथ उनके मान सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सहायता देते फलस्वरूप वे अपने कार्य को अधिक उत्साह से करते हैं। अंतः शिक्षक को बालको को सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के अधिक के अधिक अवसर देना आवश्यक है। सामाजिक गतिविधियाँ अनुभव प्रदान करने के साथ-साथ आत्मसम्मान कि भावना भी जाग्रत करती है, और आत्मसमान्न की भावना व्यक्ति को सफल और कामयाब बनाने के प्रमुख औज़ारों में शामिल है। 

इस बिन्दु के अन्त में' मैं सामाजिक गतिविधि के महत्व को समझाने के लिए प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक frandsen के कथन का उल्लेख करना चाहूँगा। फ्रैंडसन् (Frandsen, P.233 और P. D.पाठक ( P.214 )   कहते हैँ कि "बालको और युवको को प्रेरणा देने कि सबसे प्रभावशाली विधि है उनको उन अर्थपूर्ण सामाजिक कार्यक्रमों में रचनात्मक कार्य करने के अवसर देना, जिनको व्यक्ति और समाज दोनो महत्व पूर्ण समझतें है। 


5. प्रशंसा (praise) :----


प्रेरणा प्रदान करने कि एक अन्य महत्वपूर्ण विधि है प्रशंसा । अर्थात जब एक छात्र युवा या कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करें तो उसकी प्रशंसा करना । प्रशंसा से एक इंसान का उत्साह तुम ना हो जाता है और वह प्रेरणा प्राप्त करने का इच्छुक हो जाता है प्रशंसा प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण कारक है। प्रसंसा व्यन्ति को जल्दी प्रेरित करती है। प्रशंसा छात्र का कार्य के प्रति जोश और उत्साह बढ़ा देती है। प्रशंसा से बालक को प्रेरणा मिलती है। खुद देखा और महसूस किया होगा कि किसी छोटी क्लास के बच्चें या अपने परिवार के  बच्चे कि  तारीफ करते हुए, आप प्यार से, उसे गोद में लेकर बोलिये "मेरा बेटा कितना होशियार है, कितना प्यारा है। सब बच्चों से अच्छा है।" एक या दो दिन तारीफ करें, प्रशंसा करें। और फिर उस बच्चे कि एम्टिविटी पर नज़र रखे | आपको निश्चित ही बच्चे मे परिवर्तन  नज़र आाएगा।  आपको महसूस होगा कि वह बालक  ढंग से और अच्छी पढ़ाई कर रहा है। और रूचि के साथ कर रहा है। लेकिन प्रसंसा को अगर आप प्रेरणा के लिए प्रयोग कर रहे हैं तो फिर वह कारगर तब है जब उसे आप कई महीनों तक प्रशंसा प्रदान करके प्रेरित करे। हम मुश्किल से एक हफ्ता प्रशंसा नही कर पाएगे कि फिर निकम्मा और नालायक बता देगे। बच्चे कि कई बार प्रशंसा करें। कई महीनों तक करते रहे उसके बाद उसकी प्रेरणा कि राह आसान हो जायेगी। प्रशंसा एक इंसान को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। जैसे आप को  RPSC के कम्पीटीशन कि तैयारी करनी  हैं। और मैं आपका टीचर हूँ । आप जब मुझे मिलते हैं मैं मुस्कुरा कर आपकी पढाई की तारीफ कर देता हूँ "बहुत मेहनत कर रहे हो बेटा, इस बार आपकी तैयारी शानदार है। इस बार आप जरूर सफल होगें। में अगर कुछ दिनों तक रोज आपस मुस्कुरा कर यहीं दिन में दो बार भी,  बोलू तो फिर आप ही बताइये कैसा लगेगा आपको। एकदम सही कहा आपने। अच्छा लगेगा। बल्कि बहुत अच्छा फील होगा। आप अपने काम/पढ़ाई को तेजी से एवं के साथ करगे । आप हमेशा इस प्रसंशा का हकदार बनना चाहोगे। आपकी प्रशंसा ने आपको 'मोटीवेशन" (प्रेरणा) प्रदान की है।। प्रशंसा के रूप में मिला ये मोटिवेशन आपको कामयाबी तक ले जाता है । 


6. खेल विधि  (play-way- Method ) :--


यह छोटे बच्चों के लिए विशेष रूप से उपयोगी विधि है। इस विधि से बच्चों को अधिगम् (hearn) भी करवाया जाता है साथ ही खेलों के माध्यम से प्रेरणा भी प्रदान दी जाती है। बच्चों को खेल के अधिक से अधिक अवसर प्रदान करने चाहिए। खेलों के द्वारा बालको  में सामाजिक भावना का भी विकास होता है। एवं शारीरिक तथा मानसिक है विकास को बल मिलता है। आधुनिक युग में हेनरी काल्डवेल कुक ने खेल विधि को सबसे पहले प्रस्तुत किया। लेकिन इसे दुनिया में लोकप्रिय बनाया " फ्रेडरिक फोबेल मे अत: इस विधि के जन्मदाता जर्मनी के शिक्षाशास्त्री फ्रोबेल को ही माना जाता है। 

7. परिणाम का ज्ञान ( Knowledge of Result)

 

प्रेरणा देने कि महत्वपूर्ण विधि है। इस विधि मे बालक   को पाठ्य विषय के परिणाम से परिचित करवाया जाता है। आप उससे किस प्रकार सांभावित रोगे । आप जो पढ़ना चाहते है उसका परिणाम क्या होगा ? उसका ज्ञान किस प्रकार आपके लिए उपयोगी होगा। यह बात अपको भलि-भांति समझाइ जाती है। एक सच्चे एवं कुशल teacher का  भी ये दायित्व बनता है कि जहाँ तक सम्भव हो उसे छात्रों को ये अच्छी प्रकार समझाना चाहिए कि जो पाठ्यसामग्री आप पढ़गे, उस से आप किस प्रकार लाभान्वित होगे। में एक उदाहरण देकर समझाता हूँ । मान लेते है, आप 12 class या फिर B.A. II Year स्टूडेन्ट है। आपने Geography को विषय के रूप में चुना है। या Moths को चुना है। मैं. (K.S. ligree ) आपका भूगोल विषय का अध्यापक हु । अब एक योग्य शिक्षक के नाते मेरा यह फर्ज़ बनता है। और ये मेरा दायित्व भी है कि उस विषय कि पाठ्यवस्तु पर आपके साथ पूरी चर्चा करू | उसके सभी पक्षों को आपको समझाऊ । पाठ्यक्रम  के गुण दोशों पर चर्चा करू । मुझे आपको यह समझाना पड़ेगा कि इस पाठ्य विषय से आपको किस प्रकार का ज्ञान प्राप्त होगा। और आप कैसे इस ज्ञान का उपयोग अपने भविष्य में कर सकते। वर्तमान में तो यह भी बताना जरूरी है कि यह पाठ्यक्रम आपके कैरियर निर्माण में किस प्रकार से सहायक हो सकता है। आप ये पाठ्यक्रम पढ़कर किस प्रकार कि नौकरियाँ और जॉब प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात विषय को प्रारम्भ करने से पहले में आपको उसके परिणामों कि पूरी जानकारी दूँगा। एक स्वस्थ चर्चा आपके साथ करुगा। उससे आपको यह लाभ रोगा कि पढ़ने से पहले ही, कार्य को प्रारंभ  करने से पहले ही, आप परिणामों से परिचित हो जाएगे। और आपको उस विषय से सम्बन्धित फैसलों को लागू करने में सुविधा होगी। आप खुद ये तय कर पाएंगे कि अमुक विषय पढ़ना मेरे लाभदायक है या नुकशान दायक । दोस्तो आपने देखा होगा कि किसी कार्य को शुक करने से पूर्व ही हमें उसके परिणामों (Result) की जानकारी होती है, और यदि अच्छे परिणामों को  आपने समझा है तो फिर आप उस कार्य को Motivation के साथ करेंगे ।  आपको कार्य के Result से पहले ही यह लगने लग जाएगा कि मैं इस कार्य में सफल हो जाऊंगा। क्योंकि आपको विषय के अच्छे परिणाम और उसके गुण दोषो कि पूर्व जानकारी है। इस  प्रेरणा के साथ ही आपने यह यि विषयवस्तु और कार्य आरम्भ किया था। 

दोस्तों 'परिणामों' का ज्ञान" हमें शिखने (learning) कि प्रेरणा देता है। प्रसिद्ध मनोबेज्ञानिक वुडवर्ष  - Woodworth (P.328) पर इस के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहते है कि "प्रेरणा परिणामों के तात्कालिक ज्ञान से प्राप्त होती है। in english " Motivation comes from the Immediate knowledge of Result"l 

दोस्तो, इसके अतिरिक्त सामूहिक विधि, आवश्य ज्ञान विधि और कक्षा का वातारण प्रमुख विधि है, जो  प्रेरणा प्रदान करने में न प्रयुक्त होती है - 




8. कक्षा का वातावरण  (Classroom environment ) 

 ये प्रेरणा प्रदान करने कि अंतिम महत्वपूर्ण विधि है। यह विधि भी विद्यालयी छात्रों के लिए प्रउच्क्त होने वाली विधि है , जो कक्षा कक्ष के वातावरण पर निर्भर विधि है। इसमें कक्षा के माहौल को सीखने लायक और खुशनुमा बनाया जाता है। अच्छे माहौल से छायों को अपने पाठ्यक्रम को समझने, याद करने ,सीखने  कि प्रेरणा मिलती है। फ्रैंडसन (Fransen p. 208) ने। इसके समर्थन में ठीक ही कहा है वो कहते हैं कि "अच्छा शिक्षण प्रभावशाली प्रेरणा के लिए शिक्षण सामग्री से सम्पन्न, अर्थपूर्ण और निरन्तर परिर्वतन कक्षा कक्ष के वातावरण पर निर्भर करता है। 

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने प्रेरणा प्रदान करने वाली विधियों के बारे में जाना और समझा है। प्रेरणा को पढ़ने के साथ-साथ समझने कि भी जरूरत है। और प्रेरणा को समझने के लिए इसके प्रकार, विधियाँ और प्रेरणा को प्रभावित करके वाले कारकों के बारे में जानना बेहद जरूरी है।



 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर -

क्वेश्चन.1 प्रेरणा क्या होती है..?

उत्तर -  प्रेरणा को अंग्रेजी में मोटिवेशन (Motivation ) कहा जाता है। मोटिवेशन शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के"Motum" शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है तू तथा तू मोशन अर्थात गति करना। अर्थात प्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके बाद व्यक्ति गतिशील या सक्रिय हो जाता है, इस प्रक्रिया को ही प्रेरणा कहा जाता है। प्रेरणा को सीखने का हृदय तथा सीखने का स्वर्ण पथ कहा गया है। प्रेरणा ही हमें अच्छी-अच्छी बातें सीखने के लिए प्रेरित करती है।

 अगर प्रेरणा को परिभाषित किया जाए तो यह एक ऐसी की मानसिक प्रक्रिया या एक ऐसी आंतरिक शक्ति है जो अंदर से व्यक्ति को कार्य करने के लिए सदैव प्रोत्साहित करती है। और तब तक करती है जब तक की लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए। रीना किसी प्राणी की वह अवस्था है जो उसे किसी आवश्यकता के कारण भीतर से संचालित करती है तथा उसे लक्ष्य की ओर निर्देशित करती है। इसे ही प्रेरणा कहा जाता है।

 क्वेश्चन 2 प्रेरणा की परिभाषा क्या है..?

उत्तर - प्रेरणा एक ऐसी आंतरिक शक्ति और ऊर्जा है जो एक व्यक्ति को हमेशा कार्य करने और लक्ष्य की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करती है। दुनिया की अनेक मनोवैज्ञानिकों ने प्रेरणा को परिभाषित किया है। उनमें से कुछ प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त परिभाषाएं में आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं-

1. गुड (Good ) प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक good ने प्रेरणा को सबसे अच्छे ढंग से परिभाषित किया है। प्रेरणा को परिभाषित करते हुए उन्होंने लिखा कि - "प्रेरणा कार्य को आरंभ करने, कार्य को जारी रखने, और नियमित करने की प्रक्रिया है"।

2. आवेरिल (averil) - अभी दिल्ली प्रेरणा को बहुत ही प्रभावी शब्दों में परिभाषित किया। उनकी परिभाषा कुछ इस प्रकार है - " प्रेरणा का अर्थ है.. संजीव प्रयास! यह कल्पना को क्रियाशील बनती है। यह मानसिक शक्ति, गुप्त और अज्ञात स्रोतों को जागृत और प्रयुक्त करती है। यह हृदय को स्पंदनदित करती है, यह निश्चय, अभिलाषा और अभिप्राय को पूर्णतया मुक्त करती है। यह बालक में कार्य करने, सफल होने और विजय पाने की इच्छा को प्रोत्साहित करती है।"


क्वेश्चन 3. प्रेरणा का सिद्धांत किसने दिया..?

उत्तर - प्रेरणा का सिद्धांत किसी एक व्यक्ति के द्वारा नहीं दिया गया बल्कि विश्व के कई प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों ने प्रेरणा के सिद्धांत प्रस्तुत किया। प्रेरणा के कई प्रमुख और प्रसिद्ध सिद्धांत है, जो अलग-अलग मनोवैज्ञानिकों ने दिए हैं: 

1.मास्लो का प्रेरणा सिद्धांत

मनोवैज्ञानिक अब्राहम मास्लो ने प्रेरणा का यह सिद्धांत दिया था. इस सिद्धांत के मुताबिक, इंसानों की ज़रूरतें एक पदानुक्रम में होती हैं. इन ज़रूरतों में शारीरिक ज़रूरतें, सुरक्षा ज़रूरतें, अपनेपन की ज़रूरतें, सम्मान की ज़रूरतें, और आत्म-वास्तविकता की ज़रूरतें शामिल हैं. 

2. प्रेरणा का द्वि-घटक सिद्धांत

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक फ़्रेडरिक हर्ज़बर्ग ने यह सिद्धांत दिया था. इस सिद्धांत के मुताबिक, कर्मचारी की नौकरी से संतुष्टि और नौकरी से असंतोष अलग-अलग कारकों से प्रभावित होते हैं. 

3. प्रेरणा का "पुनर्बलन सिद्धांत"

इस सिद्धांत को स्किनर ने दिया था. 

4. उपलब्धि अभिप्रेरणा का सिद्धांत

डेविड सी मैक्लेलैंड ने यह सिद्धांत दिया था.  

5. व्रूम का "प्रत्याशा सिद्धांत"

6. विलियम मैगडूगल का "मूल प्रवृत्ति सिद्धांत"

7. क्लार्क लियोनार्ड का "प्रणोद- न्यूनता" सिद्धांत।

8. सिगमंड फ्रायड का "मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत"

9. सोलेसबरी एवं मेल्गोव का "सक्रियता का सिद्धांत"

10. सोलोमन और कोरबिट का "विरोधी प्रक्रिया का सिद्धांत"।


ब्लॉग नाम - प्रेरणा डायरी।

वेबसाइट - prernadayari.com   

राइटर - kedar lal

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