बच्चों के बचपन और मासूमियत पर भारी पडती उम्मीदें।
प्रेरणा डायरी (ब्लॉग )
हिंडौन, राजस्थान -321610
टेबल ऑफ़ कंटेंट / आज की पोस्ट में
1. परिचय।
2. बोझ ट्रांसफर न करें।
3. संवेदनशील बच्चों की पहचान
4. खुली बातचीत कैसे शुरू करें
5.इमोशनल बाउंड्रीज क्या होती है.
6. गिल्ट से ग्रोथ तक का सफर।
7. विरासत बदलने की शुरुआत
8. परिवारों को क्या समझना चाहिए
9. जब प्रेरणा बोझ बन जाती है
10. संवेदनशीलता का दूसरा पक्ष
11. एक संतुलन की जरूरत।
12 निष्कर्ष और सारांश
13. संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
1. परिचय :
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके बच्चों की छुट्टी या उनके चिंता में डूबा रहे रहने वाला चेहरा या उनका जरूरत से ज्यादा समझदार व्यवहार किसी गहरी भावात्मक भोज का संकेत हो सकता है..? हम अक्सर प्रेरणा प्रेरणा देने का काम शुरू करते हैं जो एक अच्छी बात है लेकिन कब यह प्रेरणा एक एड्रेस से दबाव बन जाती है यह हमें तब समझ में आता है जब बच्चे अपनी ही नहीं अपने माता-पिता की अधूरी भावनाओं और टूटे सपनों को पूरा करने की कोशिश में खुद को खोने लगते हैं। मैंने अपने जीवन में कई उदाहरण ऐसे देखे हैं जिनमें बच्चे उम्मीद के बोझ तले दब जाते हैं और उनका बचपन बिखर जाता है।
बचपन की मासूमियत पर उम्मीदों का बोझ एक जटिल और गंभीर मुद्दा है। आज के समय में बच्चों पर बहुत अधिक उम्मीदें रखी जाती हैं, जिससे उनके बचपन की मासूमियत पर भारी पड़ता है।
बच्चों पर अकादमिक प्रदर्शन में अच्छा करने के लिए बहुत दबाव होता है, जिससे वे अपने बचपन की गतिविधियों और खेलों को छोड़ देते हैं। आजकल माता-पिता भी अपने बच्चों की तुलना दूसरे परिवारों के बच्चों के साथ करते हैं। बच्चों की इस तरह की तुलना किसी भी मायने से ठीक नहीं। बच्चों की एक दूसरे से तुलना की जाती है, जिससे उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ती है और वे अपने बचपन की मासूमियत को खो देते हैं।
माता -पिता और शिक्षकों की उम्मीदें बच्चों पर भारी पड़ती हैं, जिससे वे अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए मजबूर होते हैं। आजकल सोशल मीडिया के प्रभाव के बारे में तो आप सब वाकिफ है। एक परिवार के सदस्य मुश्किल से एक जगह इकट्ठा होते हैं और यदि वह एक साथ एकत्रित हो भी जाते हैं तो बातचीत बहुत कम होती है और अपने-अपने मोबाइलों पर चिपके हुए रहते हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से बच्चों पर अपने जीवन को दूसरों के साथ तुलना करने का दबाव बढ़ता है, जिससे वे अपने बचपन की मासूमियत को खो देते हैं।
इन सभी कारणों से बच्चों का बचपन प्रभावित होता है और वे अपने जीवन की मासूमियत को खो देते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि हम बच्चों को उनके बचपन की मासूमियत को बनाए रखने में मदद करें और उन्हें अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करें। हर माता-पिता का यह कर्तव्य है कि उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनकी उम्मीद है उनके बच्चों के बचपन पर भारी नहीं पढ़नी चाहिए। वरना ना उनके सपने पूरे होंगे, और नहीं उम्मीदे।
2. बोझ ट्रांसफर ना करें :
मैं आपको कुछ समय की पहले की बात बताता हूं। कुछ समय पहले एक इंटेलिजेंट छात्र काउंसलिंग के लिए आई जो सिविल सेवा की तैयारी कर रही थी। देखने में एकदम फिट और फाइन लग रही थी।. लेकिन काउंसलिंग शुरू होने से कुछ ही पहले और काउंसलिंग के दौरान उसे अचानक घबराहट तेज धड़कने पसीने आना जैसी शिकायत हो गई। और अंत में हालात यहां तक पहुंच गए कि उन्हें उसे अस्पताल ले जाना पड़ा। जब हम अस्पताल पहुंचे और उसे छात्र को डॉक्टर ने देखा इसके बाद हमने डॉक्टर से बात की तो उन्होंने बताया कि छात्र को तनाव है.. जब उसे छात्रा से पूछा तो कहती रही कि मैं तो स्ट्रेस में नहीं हूं.. मुझे कोई तनाव में नहीं है... मैं कोई दबाव महसूस नहीं कर रही हूं। लेकिन धीरे-धीरे जब हमने बातों की तरह में जाना शुरू किया तो एक अलग ही भावनात्मक संसार खुला। यह बच्ची अपनी मां के साथ रहती थी और उसे अपनी मां की हर उम्मीद पर खडा उतरने का सपना देखा था। और उसे छात्र की सबसे गहरी चिंता यही थी कि अगर वह सफल नहीं हुई तो उसकी मां का क्या होगा..? उसकी मां ने ससुराल में देखे हुए कष्ट दुख और अपने जीवन के संघर्षों को अपनी बेटी के साथ साझा किया था और वह बार-बार कहा करती थी कि- 'बेटा उम्मीद पर खड़ा उतरना है, मुझे तुम्हारी उम्मीदों का ही सहारा है, अब तुम खुद ही कुछ अच्छा बना कर बताओ वरना हम और हमारा परिवार बर्बाद हो जाएंगे। अब यह सारी बातें उसे लड़की के लिए प्रेरणा ने रहकर बोझ बन गई।
3. संवेदनशील बच्चों की पहचान कैसे करें :
इस दरमियान एक जो महत्वपूर्ण पद होता है वह इस बात की पहचान होता है कि -" हम कैसे पहचान करें कि बच्चा भावनात्मक बोझ ढो रहा है..?
इसके लिए मैं आपको तीन खास पहचान बताता हूं।
भावनात्मक भोज होने वाले बच्चों की पहली और खास पहचान है कि वह अपने आप को दोस्त देने लगते हैं
वह किसी भी काम के विफल होने पर, कोई भी गलती होने पर अपने आप को ही जिम्मेदार मानता है। दूसरी सबसे खास बात है कि ऐसे बच्चों सफलता से बहुत अधिक डर जाता है। सफलता का डर कभी-कभी एक सामान्य बात भी होती है पर डर का अत्यधिक बढ़ जाना और इस कदर होना कि बच्चा भयभीत होने लगे. तीसरी खास बात कि ऐसे बच्चे दूसरों की अपेक्षा के लिए अपने सपनों को टाल देते हैं।
4. खुली बातचीत कैसे शुरू करें :
"मैंने जो झेला, वह तुम्हें नहीं झेलना पड़ेगा"
"मैंने जो भुगतान, वह तुम्हें नहीं भुगतना पड़ेगा"
"मैंने जो दिन देखे, वह तुम्हें नहीं देखने पड़ेंगे"
जैसे शब्दों और सवालों के साथ अपनी बातचीत की शुरुआत में करें। बातचीत के समय अपने दर्द बच्चों के सामने बयान नहीं करने चाहिए। बहुत अधिक भावुक नहीं होना चाहिए।
5. इमोशनल बाउंड्रीज क्या होती है :
अब सवाल यह उठता है की मां-बाप..कौन सी उन सीमाओं का ध्यान रखें ताकि उनके बच्चे भावनात्मक आहत न हो, और बच्चों का बचपन और मासूमियत बरकरार रहे। बच्चे और पीरियड्स के बीच में भावनात्मक सीमाओं की बाउंड्री होनी चाहिए क्योंकि यह एक स्वस्थ परंपरा होती है। आपको अगर कोई पीड़ा दुख या कष्ट है तो आप उसे अपने बच्चों के साथ साझा कर सकते हैं लेकिन साथ ही उन्हें यह भी समझाएं कि इस दुख से निपटने में वह खुद सक्षम है, आप सिर्फ अपने स्वास्थ्य और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दीजिए। बाकी सब हम खुद ठीक कर लेंगे। ऐसी बातें बच्चों को भावनात्मक रूप से कमजोर नहीं होने देती है।
6. गिल्ट से ग्रोथ तक का सफर :
बच्चों को हमेशा गिल्ट से निकालकर क्लेरिटी की तरफ लायें, उन्हें बताएं कि आपके लिए उनकी खुशियां कितनी जरूरी है. बच्चों के साथ उनकी खुशियों में शामिल होना चाहिए और उन्हें सफलता के लिए प्रेरित करना चाहिए। अपने बच्चों को हमेशा भरोसे में रखना चाहिए आप अपने क्षेत्र में अपनी नौकरी या जो मैं सफल है या नहीं है लेकिन बच्चों को हमेशा यह भरोसा दिलाना चाहिए कि मैं आपकी हर खुशी और आपके हर कदम मैं आपके साथ हूं। आप मेरे लिए अनमोल है।
7. विरासत बदलने की शुरुआत :
हमें हमारे परिवार के साथ कुछ अच्छाई और बुराइयां विरासत में मिली है तो हमें उन्हें और अपने परिवार के माहौल को बदलने के प्रयास करने चाहिए। अक्सर अपने साथ ही ज्यादा क्यों को अनजाने में आगे बढ़ा देते हैं लेकिन अच्छी फीलिंग शुरू करने के लिए अपने बच्चों को यह विश्वास दिलाए कि उनके साथ जो हुआ है वह उसे आपके साथ नहीं होने देंगे और नहीं है महसूस कारण क्योंकि सपनों को पूरा करने में पूरा सहयोग देंगे
8. परिवारों को क्या समझना चाहिए :
ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि परिवार के किसी सदस्य को या माता पिता को अपनी भावनाओं अपने बच्चों से छुपानी चाहिए लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि बच्चों को सलाह और समर्थन दिया था दिया जाना चाहिए नहीं की उन पर उन पर जिम्मेदारी लाद देनी चाहिए अपने। उन्होंने भी भरोसा दिलाए जाएगी वह अपने सपने देख सकते हैं और दूसरों के अधूरे काम पूरा करने में अपना सहयोग दे सकते हैं जो दूसरों के लिए जीता है उसी को जीना कहते हैं
9. जब कभी प्रेरणा बोझ बन जाती है
बच्चों की मन में जिम्मेदारइयों कपूर जो दबाव छुपा होता है ऐसे ही "इमोशनल पेरेंटीरिफिकेशन" के कहा जाता है।। अर्थात जब बच्चा अनजाने जाने में ही सही लेकिन माता-पिता की भावनात्मक सहारे बनने की कोशिश में जिम्मेदारियां की बोझ तले दब जाते हैं। ऐसी स्थिति में नहीं वह खुद की पढ़ाई पर ध्यान दे पाते और नहीं अपने करियर पर। उत्तर के साथ जीने लगा जाता है कि अगर वह सफल नहीं हुआ तो इसका बुरा असर को उसके मामा पर परिवार पर पड़ेगा। ऐसा बहुत जल्दी बच्चों को भावनात्मक रूप से तोड़ देता है। मुझे डर लगने लग जाता है कि उनके असफलता से मां-बाप के सपने टूट जाएंगे। किसी का नंबर चाहिए कई बार ग्रीन एंजॉय की और रिस्पांसिबिलिटी का शिकार हो जाते हैं।
10 संवेदनशीलता का दूसरा पक्ष :
जब बच्चे बार-बार मां-बाप की तकलीफ सुनते हैं तो उन्हें सिर्फ भावनात्मक रूप से भूजल हो जाते हैं बल्कि उनके एड्रेस को जीवन के बारे में भी धारणा बदलने लगती है, जीवन को लेकर उनके मकसद और मायने बदल जाते हैं, उनकी जिंदगी निराशा और राशिन हो जाती है, रिश्तो को लेकर उनकी सोच बदलने लग जाती है जैसे शादी का मतलब दर्द है.. Molरिश्ते सिर्फ ताने देते हैं.. मां-बाप का सपोर्ट नहीं है बचपन की सुनि यें बातें गहरी मान्यताएं बन जाती है। इससे आगे चलकर आत्म संदेश घबराहट रिश्तो में दूरी की धारा बन जाती है और बच्ची गंभीर तनाव का शिकार भी हो जाते हैं
11. एक संतुलन कि जरुरत :
अपनी तकलीफों को और अपनी समस्या को अपने बच्चों के लिए दूध और जिम्मेदारी ने बनने दे। क्योंकि बच्चे जब भी जीवन के फैसले और निर्णय गढ़ के बजाय क्लेरिटी के साथ लेने लगते हैं तो एक स्वस्थ पारिवारिक परंपरा का निर्माण होता है और पूरा परिवार अच्छा हल करता है
12 आर्टिकल का निष्कर्ष एवं सारांश :
बचपन की मासूमियत पर उम्मीदों का बोझ एक जटिल और गंभीर मुद्दा है। आज के समय में बच्चों पर बहुत अधिक उम्मीदें रखी जाती हैं, जिससे उनके बचपन की मासूमियत पर भारी पड़ता है। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनसे यह बोझ भारी पड़ता है:
1. *अकादमिक दबाव*: बच्चों पर अकादमिक प्रदर्शन में अच्छा करने के लिए बहुत दबाव होता है, जिससे वे अपने बचपन की गतिविधियों और खेलों को छोड़ देते हैं।
2. *प्रतिस्पर्धा*: बच्चों को अक्सर एक दूसरे से तुलना की जाती है, जिससे उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ती है और वे अपने बचपन की मासूमियत को खो देते हैं।
3. *उम्मीदों का बोझ*: माता-पिता और शिक्षकों की उम्मीदें बच्चों पर भारी पड़ती हैं, जिससे वे अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए मजबूर होते हैं।
4. *सोशल मीडिया का प्रभाव*: सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से बच्चों पर अपने जीवन को दूसरों के साथ तुलना करने का दबाव बढ़ता है, जिससे वे अपने बचपन की मासूमियत को खो देते हैं।
इन सभी कारणों से बच्चों का बचपन प्रभावित होता है और वे अपने जीवन की मासूमियत को खो देते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि हम बच्चों को उनके बचपन की मासूमियत को बनाए रखने में मदद करें और उन्हें अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करें।
13 संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
क्वेश्चन नंबर 1. बच्चों के बचपन पर उम्मीदें देख से भारी पड़ रही है.?
उत्तर --बचपन की मासूमियत पर उम्मीदों का बोझ एक जटिल और गंभीर मुद्दा है। आज के समय में बच्चों पर बहुत अधिक उम्मीदें रखी जाती हैं, जिससे उनके बचपन की मासूमियत पर भारी पड़ता है। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनसे यह बोझ भारी पड़ता है:
1. *अकादमिक दबाव*: बच्चों पर अकादमिक प्रदर्शन में अच्छा करने के लिए बहुत दबाव होता है, जिससे वे अपने बचपन की गतिविधियों और खेलों को छोड़ देते हैं।
2. *प्रतिस्पर्धा*: बच्चों को अक्सर एक दूसरे से तुलना की जाती है, जिससे उनमें प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ती है और वे अपने बचपन की मासूमियत को खो देते हैं।
3. *उम्मीदों का बोझ*: माता-पिता और शिक्षकों की उम्मीदें बच्चों पर भारी पड़ती हैं, जिससे वे अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए मजबूर होते हैं।
4. *सोशल मीडिया का प्रभाव*: सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से बच्चों पर अपने जीवन को दूसरों के साथ तुलना करने का दबाव बढ़ता है, जिससे वे अपने बचपन की मासूमियत को खो देते हैं।
इन सभी कारणों से बच्चों का बचपन प्रभावित होता है और वे अपने जीवन की मासूमियत को खो देते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि हम बच्चों को उनके बचपन की मासूमियत को बनाए रखने में मदद करें और उन्हें अपने सपनों और इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित करें।
क्वेश्चन 2. बच्चों के बचपन और मासूमियत को कैसे जिंदा रखा जा सकता है..?
बच्चों की मासूमियत और बचपन को जिंदा रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:
1. *बच्चों को स्वतंत्रता दें*: बच्चों को अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता दें और उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा दें।
2. *बच्चों के साथ समय बिताएं*: माता-पिता और बच्चों के बीच मजबूत संबंध बनाने के लिए उनके साथ समय बिताएं।
3. *बच्चों की जरूरतों को समझें*: बच्चों की जरूरतों और इच्छाओं को समझने की कोशिश करें और उनकी भावनाओं को महत्व दें।
4. *बच्चों को खेलने का समय दें*: बच्चों को खेलने और मौज-मस्ती करने का समय दें, जिससे वे अपने बचपन का आनंद ले सकें।
5. *बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ जीवन कौशल भी सिखाएं*: बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ जीवन कौशल जैसे कि समस्या-समाधान, निर्णय लेने और संचार कौशल भी सिखाएं।
6. *बच्चों को प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने का अवसर दें*: बच्चों को प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने का अवसर दें, जिससे वे अपने आसपास के वातावरण के बारे में जान सकें।
7. *बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर दें*: बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर दें, जिससे वे अपने भावनाओं को समझ सकें और उन्हें नियंत्रित कर सकें।
8. *बच्चों को सम्मान और प्यार दें*: बच्चों को सम्मान और प्यार दें, जिससे वे अपने आप को महत्व दे सकें और अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकें।
इन सुझावों का पालन करके, माता-पिता और शिक्षक बच्चों की मासूमियत और बचपन को जिंदा रखने में मदद कर सकते हैं।
क्वेश्चन 3. बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने के लिए क्या करना चाहिए..?
उत्तर -
बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं:
1. *भावनाओं को समझने में मदद करें*: बच्चों को उनकी भावनाओं को समझने में मदद करें और उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अवसर दें।
2. *भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करें*: बच्चों को उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करें और उन्हें शांत रहने के तरीके सिखाएं।
3. *सकारात्मक सोच को बढ़ावा दें*: बच्चों को सकारात्मक सोच को बढ़ावा दें और उन्हें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रोत्साहित करें।
4. *स्वतंत्रता दें*: बच्चों को अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता दें और उनकी रचनात्मकता को बढ़ावा दें।
5. *संचार कौशल सिखाएं*: बच्चों को संचार कौशल सिखाएं और उन्हें अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का अवसर दें।
6. *समस्या-समाधान कौशल सिखाएं*: बच्चों को समस्या-समाधान कौशल सिखाएं और उन्हें अपने जीवन में समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रोत्साहित करें।
7. *भावनात्मक समर्थन दें*: बच्चों को भावनात्मक समर्थन दें और उन्हें अपनी भावनाओं को समझने में मदद करें।
8. *स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दें*: बच्चों को स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दें और उन्हें अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए प्रोत्साहित करें।
इन सुझावों का पालन करके, माता-पिता और शिक्षक बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने में मदद कर सकते हैं।
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