प्रेरणादायक कहानी -- डर हमें सीमाओं में बांधता है, और जीत उन सीमाओं को तोड़ देती है।
प्रेरणा डायरी ब्लॉग
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कुछ दिव्यांग महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियां --
शीतल देवी पैरा महिला तीरंदाज
किश्तवार (जम्मू कश्मीर)
शीतल देवी जम्मू के किश्तवाड़ जिले के लाइधर गांव में जन्मी है। 18 वर्षीय शीतल देवी के दोनों हाथ जन्म से ही नहीं है इसके बावजूद उन्होंने विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया है। अदम्य साहस दिखाकर हाथों के स्थान पर उन्होंने पैरों से तीरंदाजी शुरू की तो लोग इन पर हंसते थे शीतल का मानना है कि आप किसी और कोई यह हक नहीं दें कि आप क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। इन्हें जन्म से ही दुर्लभ फोकोमेलिया बीमारी के कारण दोनों हाथ नहीं है इस वजह से लोग इन्हें अक्सर बेचारी समझते थे। जब यह 14 वर्ष की थी तो इलाज के लिए बेंगलुरु चली गई। वहां उनका कारगर इलाज नहीं हुआ लेकिन उनकी जिंदगी जरूर बदल गई। बेंगलुरु में उन्होंने पहली बार ऐसी दिव्यांग महिलाओं और पुरुषों को दिखा और उनसे मिली जो खेलों के माध्यम से देश का नाम रोशन कर रहे थे यहीं से उन्हें तीरंदाजी के बारे में पता चला धीरे-धीरे लोगों ने हौसला बढ़ाया मदद की और उन्होंने खेलों के जरिए खुद को फिर से पहचान दिलाई।
किसी की मजबूरी का मजाक नहीं बनाएं -
सच्ची भलाई के लिए किसी कमरे और प्रसिद्धि की जरूरत नहीं होती उसे चुपचाप करना पड़ता है कभी भी किसी की मजबूरी या पीड़ा को सोशल मीडिया पर दिखाना सही नहीं है असली मदद दिखाई नहीं जाती बल्कि महसूस की जाती है। मैंने अक्सर देखा है कि कुछ लोग मजबूर लोगों की मजबूरी का मजाक उड़ाते हैं।
बातों से नहीं अच्छे कामों से जवाब दें
शीतल देवी कहती हैं कि जावेद दिव्यांग लोगों से मिली, उनकी कहानी सुनी तो उन्हें लगने लगा कि जब वह कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं कर सकती.? दिव्यांग लोगों के साथ मुलाकातों ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। इस मुलाकात ने शीतल देवी को नई ऊर्जा और सकारात्मक सोच दी। इसके बाद उन्होंने तीरंदाजी शुरू की। जब उन्होंने तीरंदाजी शुरू की तो लोग उन्हें ताना देते थे कि यह विकलांग लड़की क्या तीरंदाजी करेगी.? यह ना ठीक से चल पाती है और ना इसके हाथ हैं। जय बेचारी अपना काम ठीक से कर ले यही बहुत बड़ी बात है। लेकिन शीतल ने लोगों को बातों से नहीं अच्छे काम से जवाब दिया। शीतल रहती हैं कि अब मैं ना तो खुद को सीमित रखती हूं और नहीं परिस्थितियों से जानी जाती हूं। मानसिक मजबूती के लिए मैंने जड़ों से जुड़ना जरूरी समझा। जड़ों से जुड़े हुए लोग रास्तों में भटकते नहीं हैं। शीतल कहती हैं कि -" मैं युवाओं को यह संदेश देना चाहती हूं कि अपने डर को अपनी सीमाएं तय न करने दें। डर को तोड़ने से ही जीत हासिल होती है।"
कभी लोग मुझ पर हंसते थे --
शीतल देवी बताती हैं कि अपनी दिव्यंका के कारण लोग उनका मजाक बनाते थे और उनके मां-बाप को भी चिढ़ाते थे। लोग उनके मां-बाप को कहते थे कि ऐसी बेटी क्यों पैदा की है..। लोग उन्हें ताने मारते थे। कई बार तो हद हो जाती थी और मेरे मां-बाप यह सुनकर रोने लग जाते थे। पहले मुझे कोई नहीं जानता था लेकिन तीरंदाजी में आने के बाद मेरी दुनिया बदल गई। तीरंदाजी मेरे लिए एक खेल नहीं बल्कि एक पहचान बन गई। लोगों ने मेरा मजाक उड़ाया लेकिन मैं हार नहीं मानी अगर मैं उनकी बातों में आ जाती तो आज देश का नाम रोशन नहीं कर पाती।
2. राजस्थान की गौरंशी शर्मा एक दिव्यांग बैडमिंटन खिलाड़ी की देश दुनिया में गूंज --
राजस्थान के कोटा जिले के रामगंज मंडी की मूंग बदर बेटी गौरंगी शर्मा ने सिर्फ अपनी शारीरिक सीमाओं को मात दी बल्कि बैडमिंटन कोर्ट पर तिरंगा लहराकर पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि सपनों की कोई आवाज नहीं होती वह सिर्फ जुनून और मेहनत से सरकार होते हैं। बैडमिंटन कोर्ट पर उनकी सफलता ने साबित कर दिया की चुनौतियां मनुष्य को तोड़ नहीं सकती बल्कि उसे और मजबूत बनाती हैं। इसमें उसके माता-पिता ने हर कदम पर उनके साथ दिया बैडमिंटन में रुचि देखकर उन्होंने गौरंगी को इस खेल के लिए प्रोत्साहित किया गौरंगी इस साल जापान में आयोजित ओलंपिक डेफ गेम्स में हिस्सा लेंगे।
माता-पिता भी मूक-बधिर --
गौरंगी के तू सौरभ शर्मा ने बताया कि गौरंशी के माता-पिता गौरव हुए प्रीति दोनों भी बचपन से ही मुख बधिर है। भाई गौरव क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी था वह भी देश के लिए खेलना चाहता था लेकिन दुर्भाग्य बस वह नहीं खेल सका लेकिन बेटी को उन्होंने हारने नहीं दिया। गौरव व प्रीति ने कड़ी मेहनत से गौरंगी को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनाया और उनका सपना पूरा किया। गोरौंदे मुखबदर स्कूल भोपाल में पढ़ाई की थी। बेटी गौरंगी को भी उसी स्कूल में पढ़ाई करवाई जा रही है गौरंगी की यह सफलता सिर्फ उनकी मेहनत और लगन का ही नहीं वर्ण्य उनके माता-पिता के समर्पण और सहयोग का परिणाम है।
यूनिसेफ की ब्रांड एंबेसडर बनी--
यूनिसेफ की ओर से यूथ एडवोकेट मोबाइललेशन लैब का आयोजन यूनिसेफ हेड क्वार्टर न्यूयॉर्क में किया गया था। कार्यक्रम एवं जर्नल असेंबली में शामिल होने के लिए गौरांशी शर्मा को भारत का यूनिसेफ ब्रांड एंबेसडर बनाया गया था। वे यूनिसेफ हेड क्वार्टर में आमंत्रित देश की एकमात्र खिलाड़ी भी बनी है।
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