क्यों संकट बनता जा रहा है बच्चों का अकेलापन..?


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प्रेरणा डायरी ब्लॉग
www.prernadayari.कॉम
टुड़ावली, करौली, राजस्थान - 321610


 आज की पोस्ट में -

1. भूमिका / विषय प्रवेश।
2. अकेलापन क्या है..?
3. बचपन के दिन भूला ना देना।
4. संवादहीनता मूल कारण।
5. कोरोनाकाल में संकट और गहराया।
6. अकेलेपन के प्रकार।
7. अकेलेपन पर आधारित तीन दृष्टिकोण।
8. अकेलेपन की पहचान कैसे करें।
9. अकेलेपन को दूर करने के आजमाए हुए उपाय।
 *- अच्छी नींद लेकर दूर करें अकेलेपन को 
 *- संपर्क बढ़ाएं।
 *- सामाजिक गतिविधियों में शामिल हो 
 *- समूह में अध्ययन करें।
 *- स्वयंसेवा 
 *- खुद का ख्याल रखें।
 *- दोस्त और परिवार के लोगों के साथ बात करें।
10. निष्कर्ष 
11. महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 


1. भूमिका/ विषय प्रवेश 

हमारे देश से धीरे धीरे सयुंक्त परिवार प्रथा लगभग समाप्त होती जा रही है। महानगरों में तो यह लगभग अंत कि ओर है। गाँवो में कुछ निशान बचें है..! यानी सयुक्त परिवार देखने को मिल जाते है। इस पारिवारिक विघटन के कई भयानक दुष्परिणाम देखने को मिल रहे है, खासकर -- हमारे छोटे छोटे बच्चो और किशोरों पर। उनका मानसिक स्वास्थ्य पंगु बनता जा रहा है। कुछ बच्चे अकेले रहते हैं लेकिन, हो सकता हैं अकेलापन महसूस नहीं करते हैं, जबकि कुछ लोग अकेले नहीं होते हुए भी अकेलापन महसूस करते हैं। दूसरों से कट जाना, अलगअलग रहना,  दिल टूट जाना,  गुमसुम रहना, बेचैन और घबराए हुए रहना, यह सब अकेलेपन के निशान हैं। पारंपरिक रूप से तो हमारे यहां अकेलेपन को कोई बीमारी ही नहीं माना गया है जबकि यह गंभीर शारीरिक और मानसिक रोग पैदा कर सकता है, भारत में भी अकेलेपन से ग्रसित लोगों में छात्रों की संख्या बढ़ रही है। इसमें रिश्तो की कमी से जुड़ा खालीपन या परित्याग की भावनाएं जुडी होती हैं। जैसे  उदासी, निराशा, कुंठा आदि। प्रेरणा डायरी (ब्लॉग) के आज के लेख में, मैं इसी समस्या की और आप सब का ध्यान खींचना चाहता हूं। 

"बचपन के दिन भुला न देना.."

 इन पंक्तियों का आशय आज के परिवेश में उलझ गया है। आज बचपन का तात्पर्य ही कहीं खो-सा गया है। बच्चे समय से पहले ही बड़े हो रहे हैं। उनको अपनी समझ पर ही सबसे ज्यादा भरोसा है, बड़ों की सुनना और समझना नई पीढ़ी को रास नहीं आता। वे बुजुर्गो को अपने मार्ग कि बाधा समझने लगते है। इस उम्र में समायोजन ( adjustment) का पहले से ही अभाव पाया जाता है। बचपन वैसे ही परिवर्तनों का दौर है।ऐसी दशा में अपनी अपरिपक्व बुद्धि से अपने जीवन को किस दिशा में बढ़ा पाएंगे.. कहना मुश्किल है। दूसरी ओर  माता-पिता की उपेक्षा प्रवृत्ति बच्चों के लिए बड़ी दुःख दाई साबित हो रही है। 
 
कोरोनाकाल में संकट और गहराया 

उपर से 2 साल के कोरोना काल ने भी बच्चों को अस्त- व्यस्त कर दिया। कोरोना काल भी बच्चों के लिए अभिशाप साबित हुआ। स्कूल, खेल के मैदान, यार दोस्तों से मिलना, संगी-साथियों के साथ गली-मोहल्लों में खेलना, थोड़ी बहुत मस्ती करना, सबकुछ अचानक बंद होगया। बच्चे घर में कैद हो गए। इन दृश्यों पर गौर किया जाए तो बच्चों से ज्यादा परिस्थितियां व अभिभावकों की भूमिका कठघरे में दिखती हैं। चूंकि कोरोना अचानक आई अप्रत्याशित समस्या थी। जिसका पूर्व में ना अनुभव था, ना अंदाज़ा था। वे पारेस्थितियां न केवल बच्चों के लिए अपितु सभी के लिए मुश्किल भरी थी। ऐसे में समाज तो क्या घर में ही लोगों की आपसी दूरियों ने जीवन में विकट एकाकीपन ला दिया। घर ही दफ़तर बन गए।  

4. संवादहीनता - अकेलेपन का मूल कारण :

 संवादहीनता इस एकाकीपन की समस्या को और भी गहरा कर गई। स्वभाव में चिड़चिड़ापन सबमें आ गया चाहे वो बच्चा हो या बड़ा। ऐसे मुश्किल हालात में बच्चों की परवरिश में सबसे बड़ा आघात तो माता-पिता की परिवर्तित जीवनशैली से आया। घर में सभी मोबाइल में व्यस्त हो गए।आज घर के सभी सदस्य कभी कभी एक साथ बैठ पाते है। और जब बैठते हैं तो आपसी संवाद के बजाय अपने अपने mobiel से चिपके रहते है। घर परिवार कि बात कम ही हो पाती है। बच्चों कि पड़ाई, उनके सुवास्थ, उनकी योजनाओ पर चर्चा नहीं होती।हम बच्चों को स्वस्थ व सम्पन्न मानसिक वातावरण नहीं दे पाए। 
आज का 'कल्चर' है - "एक या दो संतान और एकाकी परिवार।" जिन परिवारों में एक ही बच्चा है, उसकी हालत ज्यादा खराब होती है। वो किसके साथ खेलें और किससे बात करे। माता पिता "work from home" में व्यस्त। बच्चों पर भी पड़ाई का दबाव। 'ऑनलाइन' माध्यम में  पड़ाई कम और 'इन्टरनेट सर्फिंग' अधिक होने लग गई। 

यह हुआ कि बच्चे का ध्यान पढ़ाई से हटकर अन्य क्षेत्रों में चला गया, चाहे फिर वो उसके स्तर के अनुरूप हो या नहीं। बच्चों के मानसिक, शारीरिक व बौद्धिक विकास को आघात लगा। यह विकास कुंठित हो गया। व्यवहार में हठ और उग्रता भी आ गई। बच्चों की ग्राह्य शक्ति अपरिमित है। माता-पिता की हर बात का, अपने आस-पास के प्रत्येक घटनाक्रम का ध्यान से वीक्षण करते हैं। संवाद की कमी के बीच उनकी अपरिपक्व समझ इसे कैसे आत्मसात करेगी, यही आज चिन्ता का विषय है। वे तो जैसा देखेंगे, सुनेंगे, वैसा ही सीखेंगे और करेंगे। आज सोशल मीडिया पर तो जितना 'असामाजिक' वातावरण है उसका प्रभाव इस पीढ़ी पर साफ तौर पर देखा जा सकता है। अपशब्दों वाली भाषा के साथ ही सबकुछ आज इस मंच पर उपलब्ध हैं और बच्चों की आसान पहुंच में भी हैं। 
आज 5जी के युग में मासूम बचपन सिर्फ मोबाइल, लैपटॉप आदि उपकरणों तक सिमटता जा रहा है। उन्हें ना तो ये मतलब है कि घर में कौन आ रहा है, कौन जा रहा है। इन उपकरणों पर निर्भरता ऐसी हो गई है कि सामान्य जानकारी अथवा कोई आसान गणना सब बच्चे तत्काल मोबाइल,लैपटॉप के सहारे खोजते हैं। उनके मानसिक विकास के अवसर अवरुद्ध हो गए। 
संयुक्त परिवार में भी बड़ों के प्रति श्रद्धा का अचानक लोप होने लगा। इस कारण घर का वातावरण प्रभावित होने लगा। बच्चे जैसे 'टीचर' से बात करते हैं, वैसी ही रूखी भाषा में घर के सदस्यों से भी बात करने लगे। बड़ों के आदेश की पालना तीसरी पीढ़ी में समाप्त हो गई। बच्चों से कोई बात बुजुर्ग मनवा नहीं पाते। दोनों पीढ़ियों की दिशा भिन्न है। अध्यात्म का धरातल चर्चा से ही बाहर हो गया। घर में जीवन एकपक्षीय हो गया है। 

अधिकांश पढ़े-लिखे एकल परिवारों में माता-पिता दोनों कामकाजी हैं। बच्चे को समय नहीं दे पाना बड़ी समस्या है। समय रहते सावधान नहीं हुए तो परिणाम भयावह हो सकते हैं। मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से शारीरिक व मानसिक विकार बढ़ते जा रहे हैं। स्वयं मोबाइल का उपयोग सीमित करके उनके साथ संवाद स्थापित करना होगा। दैनन्दिन गतिविधियों, घरेलू कार्यों, रिश्तेदार व संबंधियों से मेल-मिलाप में उनको साथ रखना होगा। पढ़ाई कार्यों में भी उनका सहयोग करना होगा।

5. अकेलापन क्या है..?

अकेलेपन को एक ऐसी नकारात्मक भावना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो तब होती है जब हमारी सामाजिक आवश्यकताएं पूरी नहीं होती हैं, चाहे वह मात्रा में हो या गुणवत्ता में। यह एक भावनात्मक अनुभव है, एक वस्तुगत स्थिति नहीं, जो अलगाव और सामाजिक संबंधों की कमी से उत्पन्न होता है। अकेलापन एक ऐसी भावना है जो हमें दुखी और अकेला महसूस कराती है, भले ही हम अकेले न हों।
यह तब महसूस होता है जब हम सामाजिक संबंध और जुड़ाव की तलाश करते हैं, लेकिन वे हमें पूरी तरह से संतुष्ट नहीं करते हैं। अकेलेपन की भावना व्यक्तिपरक होती है, जिसका अर्थ है कि कुछ लोग दूसरों के साथ भी अकेलापन महसूस कर सकते हैं, जबकि कुछ लोग अकेले होने पर भी संतुष्ट हो सकते हैं. 
अकेलेपन का मूल कारण क्या है?
अकेलापन एक छोटा सा कीदा हो सकता है जो तब आपके पिछले पैड पर जाता है जब आपको इसकी उम्मीद ही नहीं होती। ये ऐसा है जैसे कोई साया तुम्हारा पीछा करता है, तुम कहीं भी जाओ। लेकिन आख़िरकार अकेलापन किस कारण से होता है?

 अकेलेपन के सामान्य मूल कारण :

 सामाजिक समावेश : ऐसा महसूस होता है कि आप भीड़ में अकेले हैं। ऐसा होता है जैसे आप लोग एक कमरे में अकेले हों, लेकिन खुद को बिल्कुल अलग-अलग महसूस कर रहे हों।

 संबंधों की कमी: शेयरों के साथ मजबूत, स्थायी संबंध नहीं होना। ऐसा है जैसे आप लोगों से अलग हो गए हैं, लेकिन ऐसा महसूस हो रहा है कि आप बिल्कुल अकेले हैं।

 डर की आशंका : खुद को टुकड़ों के सामने रखना और लकड़ी का जोखिम उठाना डरना। यह आपके कम्फर्ट जोन से बाहर के दरवाजे से डरने जैसा है।

 आत्म सम्मान की कमी :  के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखें। यह ऐसा है जैसे धूप का चश्मा जिससे सब कुछ उदास दिखाई दे।
 जीवन में बदलाव: जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव का अनुभव होना, जैसे घर से दूर जाना या दोस्त से अलग होना। यह आपके जीवन में एक बड़ा उधेड़न है- जैसा कि यह है।
याद रखें, अकेलापन एक सामान्य मानवीय भावना है। हर कोई समय-समय पर अनुभव करता है। 

महत्वपूर्ण यह है कि स्वस्थ तरीके से खोज करने के लिए इसे स्थापित करें और बात मजबूत, सार्थक बनाएं।

अकेलेपन के प्रकार :


1. भावनात्मक अकेलापन

जब कोई व्यक्ति दूसरों के साथ घनिष्ठ भावनात्मक संबंध या अंतरंगता और निकटता की कमी महसूस करता है उसे भावनात्मक अकेलेपन में गिना जाता है।

2. सामाजिक अकेलापन

सामाजिक अकेलापन तब होता है जब कोई व्यक्ति सामाजिक नेटवर्क या सामाजिक कनेक्शन की कमी महसूस करता है। सामाजिक जुड़ाव की कमी महसूस करता है।

3. दीर्घकालिक अकेलापन

 दीर्घकालिक अकेलापन ऐसी स्थिति है जिसमें कोई व्यक्ति या छात्र लंबे समय तक संबंधों में अलगाव के कारण दूर रहता है उसके अंदर अकेलेपन की भावना पैदा हो जाती है।

4. आध्यात्मिक अकेलापन

इस प्रकार का अकेलापन सामाजिक संबंधों में कमी के कारण उत्पन्न नहीं होता है लेकिन इसमें व्यक्ति के जीवन में ऐसी भावनाएं पैदा हो जाती हैं जिससे वह यह सोचने लगता है कि जीवन का कोई अर्थ नहीं है। उसे जीवन की सार्थकता ही समाप्त नजर आने लगती है इस तरह का अकेलापन उत्पन्न होता है वह आध्यात्मिक अकेलेपन में गिना जाता है।

अकेलेपन पर आधारित तीन दृष्टिकोण :


1. समाजशास्त्रीय दृस्टिकोण --
 इस दृष्टिकोण को मानने वाले विद्वानों का कहना है कि अकेलापन एक सामाजिक समस्या है जो व्यक्ति के समानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है एवं सामाजिक संबंध को कमजोर बनाता है। यह किसी व्यक्ति एवं छात्र के सामाजिक संबंधों में कमी का एहसास कराता है।

2 . मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण --
 मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण का मानना है कि अकेलापन व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर व्यापक असर डालता है। उसके जीवन में विभिन्न तरह की समस्याओं का कारण बनता है इस मानसिक स्वास्थ्य के सवालों को समझने में मदद मिलती है।

3. अस्तित्ववादी दृष्टिकोण --

 अस्तित्व वादी दृष्टिकोण में कहा जाता है कि हर कोई अंततः अकेला है और कोई भी आपके विचार और भावनाओं को महसूस नहीं कर सकता ऐसे में लोग अपने अस्तित्व के लिए अलग-अलग रहना स्वीकार करते हैं। अस्तित्व वादी अकेलेपन को एक उत्पादक और कभी रचनात्मक स्थिति के रूप में भी देखते हैं


अकेलेपन की पहचान कैसे करें :


1. खुद पर संदेह होना और योग्यता मे कमी महसूस करना।
2. हमेशा चिंता और बेचैनी बने रहना।
3. अनिद्रा की समस्या होना।
4. दोस्तों और परिवार के लोगों के बीच रहते हुए भी खुद को अकेला महसूस करना।  यह एक प्रमुख लक्षण है।
5. व्यक्ति या छात्र अकेला रहना पसंद करता है। उसे अकेलापन ही भाने लग जाता है।
6. लोगों के बीच जाने में डर का अनुभव होना।
7. किसी काम में ठीक से मन नहीं लगना।
8. हमेशा मन में उदासी के भाव समाये रहना।


 अकेलापन दूर करने के आजमाये हुए उपाय 


 अच्छी नींद से दूर करें अकेलेपन को -

 अमेरिका की दुनिया भर में फेमस संस्था नेशनल स्लिप फाउंडेशन के विशेषज्ञ होने लगभग 2300 से ज्यादा युवाओं पर सर्वेक्षण किया। इन युवाओं की औसत उम्र 40 वर्ष थी तथा आदेश से ज्यादा पुरुष थे। इस सर्वे में पाया गया कि अकेलेपन के शिकार युवाओं को सबसे ज्यादा फायदा स्वस्थ नींद से हुआ। अकेलेपन को दूर करने के लिए अच्छी नींद लेना एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
 अकेलापन दुनिया भर में बड़ी स्वास्थ्य चिंता बनकर उभरा है छात्र एवं युवा इससे अधिक प्रभावित हैं इसको लेकर चिंता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इसका कोई इलाज निर्धारित नहीं हुआ है विशेषज्ञ इस समस्या के समाधान में जुटे हैं अमेरिकी विशेषज्ञों के शोध में बताया गया है कि नींद में अकेलेपन के बीच गहरा संबंध है बेहतर नींद लेना अकेलेपन को कम करने का प्रभावी तरीका हो सकता है युवाओं में यह तरीका अधिक कारगर साबित हो रहा है। इस सर्वेक्षण और शोध के मुख्य लेखक जोसेफ का कहना है कि युवाओं में अकेलेपन को समझने के लिए नींद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है युवा देर रात तक जागने काम करने या मोबाइल पर समय बिताने के बजाय समय पर सोने लगे तो अकेलेपन और अवसाद दोनों से बच सकते हैं। जोसेफ ने बताया कि अकेलेपन को पूरी तरह समझने के लिए और शोध कार्य किया जा रहे हैं।

 संपर्क बढ़ाएं 

 अकेलेपन के समय व्यक्ति लोगों से मिलना जुलना कम या बंद हो जाता है। यार दोस्तों से संपर्क भी काम हो जाता है। सामाजिक संबंधों का ताना-बाना सिमटने लगता है। संपर्क और मेल-जल की कमी अकेलेपन को और ज्यादा बढ़ती है। इस बात का समर्थन अमेरिकी सर्जन जनरल विवेक मूर्ति की 2023 की रिपोर्ट में भी किया गया था। अकेलेपन और संपर्कों की कमी को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा माना जाता है। 

छात्र अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए, सामाजिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं, जैसे कि समूह अध्ययन, क्लब या संगठन। वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं, जैसे कि नियमित व्यायाम, स्वस्थ भोजन, और पर्याप्त नींद। इसके अतिरिक्त, वे अपने दोस्तों या परिवार के साथ बातचीत कर सकते हैं, या किसी परामर्शदाता से भी मदद ले सकते हैं।
छात्रों के लिए अकेलेपन को दूर करने के लिए कुछ विशिष्ट उपाय:

 सामाजिक गतिविधियों में शामिल होना

कॉलेज या स्कूल में विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भाग लें, जैसे कि खेल, क्लब, और संगठन। ये गतिविधियाँ नए लोगों से मिलने और दोस्ती बनाने का एक शानदार तरीका हैं। सामाजिक गतिविधियों में शामिल हों:
कॉलेज या विश्वविद्यालय में छात्र संगठनों, क्लबों, या खेल टीमों में शामिल होकर आप नए लोगों से मिल सकते हैं और सामाजिक रूप से जुड़ सकते हैं. 
 
समूह में अध्ययन 

अपने कक्षा के साथियों के साथ समूह अध्ययन करें। यह आपको एक साथ काम करने और एक-दूसरे के साथ बातचीत करने का अवसर प्रदान करता है। 

 स्वयंसेवा  

स्वयंसेवा करने से आपको दूसरों की मदद करने और एक सकारात्मक सामाजिक प्रभाव डालने में मदद मिलती है. 

 स्वास्थ्य का ध्यान रखना

नियमित व्यायाम, स्वस्थ भोजन और पर्याप्त नींद लेने से आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। 

 दोस्तों और परिवार के साथ बात करना

अपने दोस्तों और परिवार के साथ नियमित रूप से बातचीत करें। उन्हें अपनी भावनाओं को साझा करने और अपने जीवन में होने वाले बदलावों के बारे में बात करने में मदद करें। 

 परामर्श प्राप्त करना

यदि आप अकेलेपन से जूझ रहे हैं, तो किसी परामर्शदाता से मदद लेने में संकोच न करें। वे आपको अपनी भावनाओं को समझने और उससे निपटने में मदद कर सकते हैं. 
अकेलेपन को दूर करने के लिए, इन सभी उपायों को ध्यान में रखना और नियमित रूप से अभ्यास करना महत्वपूर्ण है। यदि आप अभी भी अकेलेपन से जूझ रहे हैं, तो किसी पेशेवर से मदद लेने में संकोच न करें. 

 नए लोगों से मिले

अपनी कक्षा में या कॉलेज के आसपास नए लोगों से बात करने से भी आपको सामाजिक रूप से जुड़ने में मदद मिल सकती है. 

 अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखे 

पर्याप्त नींद लें, स्वस्थ भोजन करें और नियमित रूप से व्यायाम करें। ये सब आपकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं. 
यदि आप अकेलापन महसूस करते हैं, तो किसी से बात करें:
अपने परिवार, दोस्तों या एक सलाहकार से बात करें। उनसे सलाह लेना और उनकी मदद लेना हमेशा एक अच्छा विचार होता है. 

 अपने हितों पर ध्यान दें

अपनी रुचियों का पता लगाएं और उनमें शामिल हों। इससे आपको नए लोगों से मिलने और सामाजिक रूप से जुड़ने में मदद मिल सकती है. 

 अपने आप को व्यस्त रखें 

यदि आप खाली समय में खुद को व्यस्त रखते हैं, तो आपको अकेलापन महसूस होने की संभावना कम होती है. 
पेशेवर मदद लें:
यदि आप अकेलापन महसूस करने से लगातार जूझ रहे हैं, तो एक पेशेवर सलाहकार से मदद लेने में संकोच न करें. 

 याद रखें

 याद रखें: अकेलेपन एक सामान्य भावना है। यह महत्वपूर्ण है कि आप खुद को परेशान महसूस न करें और मदद के लिए पहुंचें. 

 अपने आप को पुरस्कृत करे

जब आप कुछ नया सीखते हैं या कोई लक्ष्य प्राप्त करते हैं, तो खुद को पुरस्कृत करें। इससे आपको सकारात्मक रहने में मदद मिलेगी.

 अपने आप को स्वीकार करें

अपने आप को स्वीकार करें और अपने जीवन में आने वाले परिवर्तनों को स्वीकार करें। इससे आपको तनाव कम करने और अपने मूड को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी.

 खुश रहे  

खुश रहने के लिए, आपको अपने जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए कुछ समय निकालना चाहिए। इससे आपको अकेलापन महसूस होने की संभावना कम हो जाएगी. 

 महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर 


Question 1. क्या अकेलापन अवसाद का कारण बन सकता है..?
उत्तर - अकेलापन अवसाद का कारण बन सकता है, खासकर तब जब अकेलापन लंबे समय तक बना रहे। विशेष रूप से, अकेलेपन अवसाद में बाद में होने वाली वृद्धि की भविष्यवाणी की जाती है। इसलिए अकेलेपन के सैलून पर प्रतिक्रिया देना महत्वपूर्ण है। हालाँकि, अवसाद अकेलेपन के बढ़ने की भविष्यवाणी नहीं करता है। इसके अलावा, अकेलेपन की चिंता से अवसाद में मध्यस्थ पाया गया है।

Question 2. अकेलेपन से मनोभ्रंश क्या होता है.?

मनोभ्रंश से मनोभ्रंश और अकेले अन्य मानसिक प्रशिक्षण के होने का जोखिम बढ़ सकता है। मनोभ्रंश का बढ़ा हुआ जोखिम सामाजिक रूप से अलग-अलग होने से कम और गुणवत्तापूर्ण संबंधों की कमी से अधिक संबंधित है। संतुष्टि के बिना हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।

Question 3.अकेलापन कभी दूर हो सकता है..?

अकेलापन दूर हो सकता है। जबकि अधिकांश लोग किसी न किसी रूप में अकेलेपन का अनुभव करते हैं, आप संतृप्त गुणवत्ता वाले रिश्ते की संख्या अकेलेपन पर विजय पा सकते हैं। ऐसे लोगों की बर्बादी है जिन पर आप भरोसेमंद हैं और अलग-अलग विचारधाराओं में उन पर भरोसा नहीं है। यदि आप स्वाभाविक रूप से विकसित करने में असमर्थ हैं तो पेशेवर मदद लें।

Question 4. अकेलेपन से स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है..?

अकेलापन हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, खासकर तब जब अकेलापन लंबे समय तक बना रहे। शारीरिक रूप से, अकेलापन उच्च रक्तचाप, कोरोनरी हृदय रोग, स्ट्रोक, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, उच्च तनाव-संवेदनशील हार्मोन कोर्टिसोल और परिवर्तित जीन एक्सप्रेशन का कारण बन सकता है। मानसिक रूप से, अकेलेपन सामाजिक चिंता, अवसाद, व्यामोह, मनोभ्रंश और पैसिफिक प्रेरणा का कारण बन सकता है।



1. अबाउट अस।
2. कॉन्टैक्ट अस।
3. प्राइवेसी पॉलिसी।


4. लेखक के बारे में -


ब्लॉग - प्रेरणा डायरी। 
वेबसाइट - www.prernadayari.com
राइटर - kedar lal

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