तेल निर्यातक देशों में बढ़ रहा है चीन का दखल। इंटरनेशनल करंट-फ्रंट। प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए।
प्रेरणा डायरी।
तुड़ावाली, राजस्थान - 321610
लंबे से समय से दुनिया में तेल का खेल चला आ रहा है। दुनिया की तमाम बड़ी ताकत है इस खेल में विजेता बनने के प्रयासों में जुटी रहती हैं। दुनिया की बड़ी ताकत है इन प्रयासों में झूठी रहती हैं कि तेल के उत्पादन और निर्यात पर उनका नियंत्रण स्थापित रहे। ताकि विश्व कूटनीति में उनकी वैल्यू- बखत बनी रहे। लंबे समय से चली आ रही पुरानी पेट्रो-डॉलर व्यवस्था बीते जून में खत्म हुई है या फिर इस संधि की विदाई एक दशक पहले ही शुरू हो गई थी..?
G7 की बैठक के बीच सऊदी अरब ने ऐलान किया कि अब वह तेल बेचने के लिए अमेरिकी डॉलर के साथ-साथ युवान,और यूरो में भी तेल के भुगतान को स्वीकार करेगा, इस बात के बाहर आते ही जानकार बोल उठे कि पेट्रोल-डॉलर तो उसी दिन खत्म हो गया था, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जोबिदेन और सऊदी सुल्तान मोहम्मद बिन सलमान के बीच रिश्ते खराब हुए थे। क्योंकि यह रिश्ते बहुत मजबूत और बहुत पुराने थे। 15 अमेरिकी राष्ट्रपति, 7 सऊदी सुल्तान, दो खाड़ी युद्ध, और अमेरिका पर हुए आतंकी हमले भी इस रिश्ते को हिला नहीं पाए थे। लेकिन यह रिश्ते 2021 में तब कमजोर पड़ गए जब अमेरिकी एजेंसियों ने पत्रकार जमाल खगोशी के इस्तांबुल में कत्ल पर सऊदी अरब को जिम्मेदार बता दिया था। इन दिनों अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों में बहुत खटास आई थी। दोनों देश एक दूसरे के आमने-सामने आ गए थे।आरोप प्रत्यारोपों का दौर जमकर चला था। अमेरिका इस बात पर बहुत गुस्सा हुआ था और उसका सीधे तौर पर यह मानना था कि जमाल खगोशी के कत्ल में सऊदी अरब का हाथ है।
ऐसा माना जाता है कि लगभग 2016 से अमेरिका तेल का निर्यातक देश बन गया था। और उसकी सऊदी अरब पर निर्भरता खत्म हो गई थी। यह पेट्रोल-डॉलर के अवसान का बिंदु था. कहा तो यह भी जा रहा है कि 2022 में चीन के राष्ट्रपति सी जिनपिंग की सऊदी यात्रा के दौरान तेल कारोबार में युवान के इस्तेमाल की सहमति के साथ ही पेट्रोल डॉलर के दिन पूरे हो गए थे। फिर भी पेट्रो-डॉलर की करवट बड़ी अर्थपूर्ण है।क्योंकि तेल कूटनीति का अतित ऐसा है।
अमेरिका और सऊदी अरब के बीच "पेट्रोल डॉलर संधि" कि कूटनीति के पुरोधा हेनरी किंसीजर और तेल कूटनीति के महारथी सऊदी अरब के तेल मंत्री अब्दुल जकी यमनी की देंन थी। 1970 के दशक में गोल्ड स्टैंडर्ड खत्म होने के बाद मुद्राओं के उतार चढ़ाव बढ़ने लगे थे. 1973 में अरब इजरायल के बीच युद्ध में अमेरिका ने इजरायल की मदद की तो नाराज सऊदी की पहल पर ओपेक ने अमेरिका को तेल देना बंद कर दिया था। ओपेक दुनिया के तीन निर्यातक देशों का एक बड़ा संगठन है। सऊदी अरब अमेरिकी संबंधों में यह सबसे खराब दौर था। पेट्रोल डॉलर संधि कूटनीति की किताबों का सबसे प्रिय अध्याय इसलिए भी रहा है क्योंकि वह सऊदी जो 1973 में अमेरिका का तेल बंद कर उसे सजा दे रहा था, उसी ने 1974 में अपने तेल को अमेरिकी मुद्रा डॉलर से बांध दिया था. इस संधि से अमेरिका की सैन्य और आर्थिक मदद सऊदी अरब को मिली। अमेरिका ने सैन्य साजो समान से लेकर उच्च तकनीकी तक की कई सुविधा सऊदी अरब को मुहैया कराई थी। हर मोर्चे पर सऊदी अरब का समर्थन किया। इसके चलते मध्य पूर्व में सऊदी का रसूक बढ़ गया। दूसरे 1970 के दशक में अमेरिका को डॉलर के लिए एक मजबूत सहारा चाहिए था और अपने लिए ऊर्जा सुरक्षा की भी जरूरत थी। पेट्रोल डॉलर समझौते से दोनों मकसद सद गए थे। अमेरिकी डॉलर तेल कारोबार के केंद्र में आ गया। अब दुनिया के प्रत्येक मुल्क को डॉलर की दरकार थी। तेल का कारोबार डॉलर में ही मुख्य रूप से होने लगा। दुनिया में डॉलर की अहमियत और बढ़ गई।अन्य तेल अर्थव्यवस्थाओं ने भी खुद को डॉलर से जोड़ लिया।
अमेरिकी तेल क्रांति--
1991 में अमेरिका के जॉर्ज पी मिशेल के प्रयासों से गैस का खजाना खुल गया। अमेरिका ने गैस और तेल की अपनी नई खोजो को अंजाम तक पहुंचाया। परिणाम स्वरूप 2005 में उत्पादन बढ़ने लगा और 2014 तक अमेरिका ने तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता स्थापित कर ली। ऐसे में अमेरिका को अधिक आयात से मुक्ति मिल गई। अमेरिका का आयात न्यूनतम हो गया। 2016 से तो अमेरिका ने तेल निर्यात भी खोल दिया। तेल के इस्तेमाल से अमेरिका ने अपनी कई कूटनीतिक चालो को साधा। गैस का निर्यात जबरदस्त तेजी से बड़ा। 21वीं सदी के दूसरे दशक में अमेरिका का सबसे बड़ा तेल उत्पादक बन गया। सऊदी अरब और रूस भी अब उससे पीछे थे। वह पांचवा सबसे बड़ा तेल निर्यातक भी बन गया। अमेरिका ने अपने यहां सेल तेल के उत्पादन को प्रोत्साहित किया। आज अमेरिका में कुल उत्पादन की करीब 72% ड्राई गैस और 66% तेल इन चट्टानों से निकलता है। सैल तेल की लागत भी बहुत कम है।
लगभग चार दशक में अमेरिका तेल के आयातक से तेल निर्यातक बन गया। अमेरिका तेल कि मोहताजी से तेल की बादशाहत तक पहुंच गया। इंटरनल एनर्जी एजेंसी का आकलन है कि 2024 में तेल का उत्पादन औसत 15 लाख बैरल प्रतिदिन की दर से बढ़ेगा। सप्लाई 10 से 11 करोड़ बैरल होगी मगर उत्पादन में अधिकांश बढ़त गैर ओपेक देशों यानी अमेरिका, ब्राजील, गुयाना और कनाडा से आएगी। हिंदी सुने अपने तेल भंडारों की उत्पादन पर तेजी से काम किया है और उच्च तकनीक का प्रयोग करते हुए लागत भी काफी कम आने दी है। डॉलर की बादशाहत पर पेट्रोल-डॉलर की विदाई का तत्काल असर नहीं हुआ. मगर कूटनीतिक मोर्चे पर असर होगा। आने वाले समय में इस समझौते का असर दुनिया की कूटनीति पर नजर आएगा। तेल का खेल वैश्विक कूटनीति में अपना नया रंगमंच स्थापित करेगा।
पेट्रोल- युवान का धमाका -
सऊदी ने पेट्रोल-डॉलर खत्म कर, डॉलर के साथ जिन तीन नई मुद्राओ को शामिल किया है उनमें युवान सबसे महत्वपूर्ण है। सऊदी अरब के लिए अब चीन सबसे बड़ा बाजार है. एशियाई तेल के खेल में चीन का दखल बढ़ रहा है। चीन ने भी सऊदी अरब को नई तकनीक दी है, चीन ने ईरान से रिश्ते बेहतर करवाये हैं। भारत के दबाव को परे खिसका कर सऊदी अरब को ब्रिक्स का सदस्य बनवा दिया। ब्रिक्स काफी महत्वपूर्ण इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन बनता जा रहा है। चीन ही सऊदी का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। दोनों देशों की करीबी बढ़ रही है। तेल के खेल में चीन का वर्चस्व भी बढ़ रहा है। पेट्रोल डॉलर की विदाई पेट्रो-युवान की शुरुआत है। तेल कूटनीति में पेट्रोल युवान की शुरुआत अपना नया असर दिखायेगी। क्योंकि सऊदी अरब के साथ दोनो बड़े तेल उत्पादक - यानी रूस और ईरान भी तेल कारोबार में चीन की करेंसी का इस्तेमाल करेंगे. भारत जैसे मुल्क डॉलर में तेल खरीदेंगे या युवान में इस पर भी निगाहे रखी जाएगी। और यह बड़ा दिलचस्प होगा तेल की दुनिया में अब दो ध्रुव बन गए हैं। जैसे किसी जमाने में विश्व में दो ध्रुवीय महाशक्तियां थी। अब वैसा ही कुछ तेल के खेल में भी हो रहा है। दुनिया के तीन सबसे बड़े उत्पादक यानी सऊदी अरब, ईरान और रूस अब चीन के इशारे पर चलेंगे। जबकि अटलांटिक और यूरोप के तेल उत्पादकों की अगुवाई अमेरिका करेगा. हो सकता है आने वाले समय में यह जंग बड़ी दिलचस्प हो और देखने लायक हो। पूरी दुनिया की नजरे इस पर रहने वाली हैं।
ब्लॉग -- प्रेरणा डायरी।
वेबसाइट -- www.prernadayri.com
राइटर -- केदार लाल।
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