नोमोफोबिया - छात्रों का मोबाइल फितूर.. अब कैसे हो दूर..?

प्रेरणा डायरी।

 हर अच्छे आविष्कार के कुछ फायदे भी होते हैं तो कुछ नुकसान भी। आज डिजिटल दुनिया ने बड़ी तरक्की की है। लेकिन इसके साथ ही कई समस्याएं भी पैदा कर दी हैं। आज की इस डिजिटल दुनिया में फोन के बिना एक घंटा भी गुजरना बड़ा मुश्किल और जटिल होता है। हर चीज के लिए हम इनका उपयोग कर रहे हैं। जैसे मौसम की जानकारी लेने से लेकर परिवार के लोगों के संपर्क में रहने तक की हर इनफॉरमेशन हमें मोबाइल के जरिए प्राप्त हो रही है।
 कुछ लोगों के लिए तो अपने मोबाइल फोन के बिना रहने का विचार अत्यधिक चिंता का कारण बन जाता है। उन्हें हमेशा यह डर सताता रहता है कि मोबाइल उनके पास है या नहीं। कहीं मोबाइल खो तो नहीं गया।  कहीं बैटरी डिस्चार्ज तो नहीं हो गई। कहीं कोई मैसेज तो नहीं आया। दिमाग इसी तरह के फितूर से चिंतित रहता है।


 नोमोफोबिया से तात्पर्य --

 नोमोफोबिया अपेक्षाकृत एक नया शब्द है। इस शब्द का अर्थ है नो -मोबाइल- फोन -फोबिया. जब किसी इंसान को मोबाइल की लत लग जाती है, तो इसे मेडिकल भाषा में नोमोफोबिया कहा जाता है. ये शब्‍द 'नो मोबाइल फोबिया' से मिलकर बना है. इसमें व्‍यक्ति को एक तरह का फोबिया हो जाता है कि कहीं उसका मोबाइल उससे दूर न हो जाए. नोमोफोबिया की स्थिति में व्‍यक्ति मोबाइल के बिना नहीं रह पाता. नोमोफोबिया व्‍यक्ति के दिमाग पर असर डालता है. मोबाइल फोन के बिना रहने का यह दर भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि दुनिया भर में फैला हुआ है। आज की तेज तर्रार प्रौद्योगिकी संचालित दुनिया में हमारे स्मार्टफोन दैनिक जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन गए हैं हम उनका उपयोग संचार और मनोरंजन के साथ उत्पादकता बढ़ाने के लिए कई तरह से करते हैं। भारतीय उपयोगकर्ताओं के लिए फोन के बिना रहने का विचार भाई और चिंता उत्पन्न कर देता है जिसका नतीजा है नोमोफोबिया। डिजिटल तकनीकी यह एक ऐसी चिंता है जिसका सामना लोग अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं कर पाने के दौरान करते हैं फोन में सिग्नल नहीं होना बैटरी खत्म होने का डर को समय तक नोटिफिकेशन नाम मिलने पर भी वह चिंतित हो जाते हैं और यह चिंता उनमें विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा करती है युवा पर पीढ़ी में यह समस्या आमतौर पर देखी जा रही है छात्र भी इस समस्या से बहुत पीड़ित हैं। 

 यह लक्षण आते हैं नजर --

मोबाइल को बार बार चेक करना
जरा भी देर के लिए मोबाइल को खुद से दूर न करना
अगर मोबाइल में कुछ दिक्कत आ जाए तो घबरा जाना
कॉल, मैसेज या नोटिफिकेशन को बार-बार चेक करना
इंटरनेट काम न करने पर बेचैन हो जाना
ऐसे लोग मोबाइल स्विच ऑफ करने से भी कतराते हैं
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इसके कुछ लक्षण इस प्रकार है -

मोबाइल के साथ सोना -

इसमे मनुष्य मोबाइल को अपने पास रखकर सोते है, या तकिया के अंदर रखकर सोता है।

मोबाइल नहीं मिलने पर घबराना -

अगर आप अपना मोबाइल कहीं रख दिए है और वो ना मिल रहा है तो आप घबरा जाते है, थोड़ा बहुत घबराना आम बात है, लेकिन मोबाईल नहीं मिलने पर खुद को असहाय समझना बहुत ही गंभीर समस्या है।

बाथरूम मे मोबाइल लेकर जाना -

कुछ लोग इस बीमारी से इतने ग्रसित हो गए है कि वो बाथरूम भी मोबाइल लेकर जाते हैं।

बार-बार मोबाइल देखना -

अगर किसी को बार बार मोबाईल देखने की आदत है तो ये भी एक गम्भीर समस्या है।
मोबाइल  चार्ज कम - मोबाइल की चार्ज कम होने पर गुस्सा का आना।


 छात्र-छात्राओं की एकाग्रता और नींद के स्तर में कमी--

नोमोफोबिया कोई मानसिक विकार है या नहीं, ये अभी सिद्ध नहीं हुआ है, लेकिन इसका असर दिमाग पर जरूर पड़ता है. इसकी वजह से शरीर में मेलाटोनिन की मात्रा कम होती है और नींद आने में दिक्कत आती है.

इसके अलावा नोमोफोबिया व्‍यक्ति की आंखों पर भी बुरा असर डालता है. इसके कारण आंखों से पानी आने की समस्‍या हो सकती है, जो जो की Vision Syndrome का रूप ले सकती है। मोबाइल फोन की यह है लट छात्र-छात्राओं के नींद के पैटर्न को भी बाधित करती है क्योंकि उन्हें देर रात में भी अपने उपकरणों की लगातार जांच करने की जरूरत महसूस होती है। इससे ने केवल उनकी पढ़ाई और शैक्षणिक प्रदर्शन बल्कि समग्र विकास प्रभावित होता है क्योंकि हम सामाजिक संपर्क के लिए अपने फोन पर तेजी से निर्भर हो रहे हैं। इस निर्भरता के कारण छात्र-छात्राओं की एकाग्रता के स्तर में भी कमी हो रही है।
के बाहर स्मार्टफोन का कम से कम इस्तेमाल करें। इसके लिए जब आपको जरूरत हो, उस समय फोन करने के लिए यूज करें।

 नोमोफोबिया से निपटने में विद्यालयों की अहम भूमिका --

 नोमोफोबिया से निपटने में शिक्षण संस्थानों और स्कूलों की अहम भूमिका है. स्कूलों तथा शैक्षिक संस्थानों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए। विद्यालयों में फोन का इस्तेमाल पूर्ण रूप से बंद होना चाहिए। शिक्षकों के लिए भी पाबंदी लगनी चाहिए। शिक्षकों को छात्रों के स्मार्टफोन के उपयोग के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए। जब फोन के उपयोग की बात आती है तो इसके लिए सीमा निर्धारित करना और स्वस्थ आदतें स्थापित करना भी महत्वपूर्ण है जैसे फोन से ब्रेक लेना, ऐसी गतिविधियों में शामिल होना जिन में स्क्रीन शामिल नहीं हो, फोन पर ऐसी एप व सुविधाओं का उपयोग करना जो स्क्रीन समय को ट्रैक करती हो, व उपयोग की सीमा निर्धारित करती हो। इससे आपको यह जानने में मदद मिल सकती है कि आप अपने डिवाइस पर कितना समय बता रहे हैं। यह बदलाव लाने में मददगार साबित हो सकता है। स्मार्टफोन ने निसंदेह हमारे जीवन जीने के तरीकों को बदल दिया है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि वह सिर्फ उपकरण है और वास्तविक मानवीय कनेक्शन का प्रतिस्थापन नहीं है। हम अपने मानवी जीवन व डिजिटल दुनिया में एक स्वस्थ संतुलन बना सकते हैं और इसमें हमारे विद्यालय एवं शिक्षक अहम भूमिका अदा करते हैं।
 कुल मिलाकर नोमोफोबिया तनाव और चिंता देकर अकेलेपन में अलगाव की भावनाओं को बढ़ा रहा है और शैक्षणिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को बाधित कर रहा है। विशेष रूप से छात्र-छात्राओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने स्मार्टफोन के उपयोग के प्रति सचेत रहें। इसके लिए सीमा निर्धारित करें और अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के लिए उचित कदम उठाएं।


 नोमोफोबिया का इलाज -- स्मार्ट फोन से दूरी


--  सप्ताह में एक दिन जरूर सोशल मीडिया से दूरी बनाएं। अपने दोस्तों को भी ऐसा करने की सलाह दें।

--  घर पर अपने परिवार वालों को समय दें। अगर आप मोबाइल कम यूज़ करेंगे, तो आपको बार-बार बैटरी चार्ज करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

--  अगर हो सके तो सोशल मीडिया एक महीने में 4-5 दिन लगातार सोशल मीडिया से दूर रहें।

--  रात में मोबाइल फोन का कम से कम यूज़ करें। इसके बदले में बुक्स पढ़ सकते हैं। 

--  बीमारी या संक्रमण के लक्षणों की स्थिति में डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

--   स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल की बजाय, अच्छी पुस्तक पढ़ने की आदत डाल सकते हैं और इनमें आपका मन भी लग जाएगा जैसे आप प्रेरणा प्रदान करने वाले अच्छे लेखकों की कहानी पढ़ सकते हैं आपको कविताएं पसंद है तो आप कविताएं पढ़ सकते हैं कोई उपन्यास पढ़ सकते हैं। इससे स्मार्टफोन की आदत से भी छुटकारा मिलेगा साथ ही आपकी पढ़ाई में एक अच्छी आदत शामिल हो जाएगी।

--  सुबह शाम रोज व्यायाम करें या खुली हवा में घूमने निकले।

--  सोने के वक्त या बिस्तर पर जाने से पहले मोबाइल को स्विच ऑफ करके दूर रखते हैं सोते समय मोबाइल का यूज़ बिल्कुल बंद कर दें।

-- परीक्षा के दिनों में स्मार्टफोन से एकदम दूरी बनाकर रखें केवल स्टडीज से संबंधित कोई मैटर देखना हो तो ही फोन का इस्तेमाल करें।


       प्रेरणा डायरी ब्लॉक परीक्षा की तैयारी

 महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

 क्वेश्चन नंबर 1 नमो फोबिया क्या है
 क्वेश्चन नंबर 2 नाम का फोबिया कब होता है
 क्वेश्चन नंबर 3 नमो फोबिया के लक्षण क्या है
 क्वेश्चन नंबर 4 नमो फोबियस को कैसे दूर करें.
 क्वेश्चन नंबर 5 क्यों होता है छात्रों में नोमोफोबिया
 क्वेश्चन नंबर 6"मोनोफोब्या" छात्रों का: मोबाइल फितूर क्वेश्चन नंबर 7 कैसे करें दूर.
 क्वेश्चन नंबर 8  कैसे बचे छात्र नोमोफोबिया से


 ब्लॉग नाम -  प्रेरणा डायरी।
 वेबसाइट  - www.prernadayari.com
  राइटर - केदार लाल। 

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