...क्या ताइवान को बचा पायेगा अमेरिका...? या तिब्बत की तरह खा जाएगा चीन। ( इंटरनेशनल इश्यू - करंट-फ्रंट। प्रतियोगी छात्रों के लिए )
प्रेरणा डायरी।



तुड़ावली, करौली, राजस्थान - 321610
वैश्विक परिदृश्य - इंटरनेशनल फ्रंट इश्यू
... क्या ताइवान को बचा पाएगा अमेरिका..??
या तिब्बत की तरह का जाएगा चीन..?
दोस्तों नमस्कार।
लंबे समय से छात्र-छात्राओं की यह मांग रही है कि, मैं अपने ब्लॉग पर एक ऐसा पेज लिखना शुरू करूं जिस में दुनिया के ताजा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हो। इससे छात्रों को आईएएस, राज्य प्रशासनिक सेवाओं और प्रथम श्रेणी की उच्च स्तरीय परीक्षाओं कि तैयारी में होने वाले मे मदद मिल सके। इन परीक्षाओं के साक्षात्कार में अंतरराष्ट्रीय ताजा घटनाक्रम पर सर्वाधिक चर्चा होती है। इन मुद्दों पर उनसे अपने विचार और अपनी राय व्यक्त करने के लिए कहा जाता है। प्रशासनिक सेवाओं के अतिरिक्त अन्य दर्जनों प्रतियोगी परीक्षाओं में अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम से संबंधित महत्वपूर्ण सवाल पूछे जाते हैं।
यदि प्रतियोगी परीक्षाओं को छोड़ दें, तो बाहरी दुनिया में भी अंतरराष्ट्रीय ताजा घटना को बहुत अधिक सर्च किया जाता है। प्रेरणा डायरी ( www.prernadayari.com ) हफ्ते में दो या तीन विश्व की सबसे चर्चित घटनाओं पर अपने आर्टिकल लिखकर प्रेरणा डायरी वेबसाइट पर पब्लिश करेगी. आप प्रेरणा डायरी पर अंतरराष्ट्रीय घटनाओं से संबंधित आर्टिकल पढ़ सकते हैं --
चीन और ताइवान के मध्य का विवाद भी दुनिया के सबसे चर्चित और संवेदनशील मुद्दों में से एक है। आज का मेरा आर्टिकल इसी मुद्दे पर आधारित है कि क्या "" अमेरिका चीन से ताइवान को बचा पाएगा..? .. या फिर चीन तिब्बत की भांति ताइवान को खा जाएगा।
चीन की विस्तारवादी नीतियों से पड़ोसी देश आहत हैं। चीन की विस्तारवादी नीतियों से ही दुनिया के एक शांतिप्रिय देश तिब्बत का दुनिया से नाम मिट गया। भारत, नेपाल, भूटान, ताइवान आदि के साथ चीन का विवाद रहा है। पिछले कुछ वर्ष पूर्व गलवान घाटी में हुआ भारत -चीन विवाद दुनिया के सामने है। चीन के पूर्व में स्थित प्रशांत महासागर में ताइवान एक छोटा सा द्वीपीय देश है। एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम के तहत चीन के राष्ट्रपति शी जीपनिंग ने अपनी सेना से वर्ष 2027 तक ताइवान पर बलपूर्वक कब्जा करने के लिए तैयार रहने को कहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कोई साधारण बात नहीं है। वैश्विक जगत में इस बात की चर्चा है। ताइवान को बचाने के लिए विश्व के स्तर पर प्रयास होने चाहिए. यह किसी एक देश के बस कि बात बाद नहीं है, चाहे वह स्वयं अमेरिका ही क्यों ना हो। ताइवान की सुरक्षा के लिए अमेरिका को अतिरिक्त सैन्य साधन जुटाने होंगे। अरबों डॉलर का खर्चा होगा। वर्तमान में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से ताइवान की रक्षा पर सवाल करने पर वह यह तो बार-बार कहते हैं कि,अमेरिका ताइवान की मदद के लिए सेना भेजेगा, पर हाल ही में उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि "यह सब परिस्थितियों पर निर्भर करेगा"। यानी सीधे आग में कूदने से अमेरिका भी बचना चाहेगा। कहते हैं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब पद पर थे तो उन्होंने कुछ सीनियर सिनेटर से बातचीत की थी। इस बातचीत में उन्होंने यह कहा था कि "यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो हम इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकते।" अमेरिका ताइवान की मदद की बातें तो करता है और वैश्विक स्तर पर ऐसे बयान भी देता है लेकिन क्या यदि चीन ने ताइवान पर हमला किया तब अमेरिका अपनी सेना भेज कर ताइवान की मदद करेगा...? यह एक बड़ा सवाल है।
इस मसले पर अमेरिका की पेसिफिक कमान के प्रमुख एडमिरल सैमुअल पापारो के बयान काफी मायने रखते हैं। पापारो का कहना है कि ऐसे हालातो में ताइवान जलसंधि की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। ताइवान जल संधि चीन और ताइवान के मध्य एक सकरा समुद्री रास्ता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यही चीन और ताइवान दोनों को अलग करता है। अमेरिकी एडमिरल कहते हैं कि हमने इसके लिए प्लान ए तैयार किया है। जिसके तहत चीन को ताइवान जलडमरू मध्य की ओर जाने से रोका जाएगा। हाल ही में एशिया के प्रमुख रक्षा शिखर सम्मेलन "सांगरी डायलॉग" के मौके पर उन्होंने बातचीत में कहा कि मेरा काम यह सुनिश्चित करना है कि अब, या 2027 और उसके आगे भी अमेरिकी सेना और उसके सहयोगी ताकतवर हो, और किसी भी हालत को संभालने में सक्षम हो।
यदि निकट भविष्य में चीन ताइवान पर बलपूर्वक कब्जा करने के लिए आक्रमण कर देता है तो अमेरिका के किसी भी राष्ट्रपति के लिए दुनिया की दूसरी तरफ स्थित एक छोटे से देश की रक्षा के लिए अपने सैनिकों को जंग के मैदान में भेजना बहुत कठिन फैसला होगा। एडमिरल पापारो ने यह भी कहा कि चीन की रणनीति को नाकाम बनाने की कुंजी अमेरिकी रणनीति है "हलेस्केप" है। इसके मूल में यह विचार है कि जैसे ही चीन का बेड़ा 100 मिल के जल मार्ग जो, चीन और ताईवान को अलग करता है, पर आगे बढ़ना शुरू करेगा क्षेत्र को अमेरिकी लड़ाकू विमानों, हजारों मानव रहित पनडुब्बियों एवं युद्ध फोटोन तथा दोनों से घेर लेगी इससे ताइवान अमेरिका और अन्य सहयोगी देशों की सेनो को गहरी प्रतिक्रिया देने के लिए समय मिल जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि मैं कई व्यवस्थित क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए ताइवान जल डमरू मध्य को heleskep👌 में बदलना चाहता हूं ताकि चीनी सेना के जीवन को एक माह के लिए पूरी तरह दयनीय बना सकूं। और अन्य रणनीतियों को बनाने के लिए समय प्राप्त कर सकूं। उन्होंने पूरा ब्यौरा देने से तो इंकार कर दिया पर यह कहा कि इस नीति को अमल में लाया जा सकता है।
अमेरिका की तरफ से कुछ ऐसे संकेत मिल भी रहे हैं कि हेलेस्केप योजना को अमल में लाने के लिए रणनीति बनाई जा रही है। और उसे मजबूत किया जा रहा है। मार्च में रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि वह इस मिशन के तहत मानव रहित युद्धपोतों और ड्रोन विमान के लिए एक कार्यक्रम तैयार कर रहा है जिस पर एक बिलियन डॉलर खर्च करेगा। एडमिरल पपरो का कहना है कि इस कार्यक्रम की प्रगति को देखकर में खुश हूं और इस कार्यक्रम से जाहिर होता है कि अमेरिका ने रूस- यूक्रेन युद्ध से कुछ सबक सीख लिया है। और ड्रोन तकनीकी में नवाचार किया जा रहा है। यूक्रेन ने भी अपनी ड्रोन तकनीकी में सुधार करके रूस को काफी चुनौती पेश की है। विशेषज्ञों के अनुसार हमला होने तक अगर ड्रोन तैयार नहीं हो पाते हैं तो संघर्ष के लंबे समय तक चलने की संभावना बढ़ जाती है। अमेरिकी नौसेना और वायु सेवा को भी भारी नुकसान होगा और इस नुकसान की चपेट में संभवतह से जापान, दक्षिण कोरिया, और फिलिपींस देश आ सकते हैं।
ब्लॉग नाम - प्रेरणा डायरी।
वेबसाइट - prernadayari.blogspot.com
राइटर - Kedar Lal
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